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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
है कि ये काव्यग्रन्थ हों। कालिदासविरचित ऋतुसंहार इन्हीं प्राचीन ग्रन्थों के अनुकरण पर लिखा गया होगा।
अनुक्रमणी-ग्रन्थ-अष्टाध्यायी के 'सास्य देवता' प्रकरण' से विदित होता कि उस समय वैदिक मन्त्रों के देवतानिर्दशक ग्रन्थों का ५ रचना हो चुकी थी। शौनक-कृत ऋग्वेद की ऋषि देवता आदि की
१० अनुक्रमणियां निश्चय ही पाणिनि से पूर्ववर्ती हैं । शौनकीय बृहदेवता भी देवतानुक्रमणी ग्रन्थ ही है। शौनक के शिष्य आश्वलायन और कात्यायन ने भी ऋग्वेद की सर्वानुक्रमणियां रची हैं। आश्वलायन सर्वानुक्रमणी इस समय प्राप्त नहीं है, परन्तु अथर्ववेद को बृहत्सर्वानुक्रमणी में वह उद्धृत है ।' सामवेद को नैगेयानुक्रमणी भी प्रकाशित हो चुकी है, परन्तु वह प्राचीन है या अर्वाचीन, इस का अभी निर्णय नहीं हुआ। यजुर्वेद की एक सर्वानुक्रमणी भी कात्यायन के नाम से प्रसिद्ध है, परन्तु यह अर्वाचीन अप्रामाणिक ग्रन्थ है।'
___ संग्रह-दाक्षायण की प्रसिद्ध कृति 'संग्रह' ग्रन्थ पाणिनि का १५ समकालिक है। दाक्षायण का ही दूसरा नाम व्याडि है । दाक्षायण
पाणिनि का संबन्धी है, यह पतञ्जलि के 'दाक्षिपुत्रस्य पाणिनेः४ वचन से स्पष्ट है । ऐतिहासक विद्वान् दाक्षायण को पाणिनि के मामा का पुत्र (ममेरा-भाई) मानते हैं, परन्तु हमारा विचार है कि दाक्षायण पाणिनि का मामा है । यह हम पाणिनि के प्रकरण में लिख चुके हैं । संग्रह नाम गणपाठ ४।२।६० में उपलब्ध होता है । कैयट आदि वैयाकरणों के मतानुसार संग्रह ग्रन्थ का परिमाण एक लक्ष श्लोक था। महावैयाकरण भर्तृहरि ने अपनी महाभाष्यदीपिका में लिखा है कि संग्रह में १४ सहस्र पदार्थों की परीक्षा है। भर्तृहरि के शब्द इस
प्रकार हैं-'चतुर्दशसहस्राणि वस्तूनि अस्मिन् संग्रहग्रन्थे २५ (परीक्षितानि) । . इतिहास, पुराण, पाख्यान, आख्यायिका और कथाग्रन्थों का
१. अष्टा० ४।२।२४-३५॥ २. ऋषिदेवतछन्दांयाश्वलायनानुक्रमानुसारेणानुक्रमिध्यामः । पृष्ठ १७८ । ३. देखो हमारा 'वैदिक छन्दोमीमांसा' लेखक का निवेदन', पृष्ठ १.२ । ४. महाभाष्य १।१।२०॥
५. पूर्व पृष्ठ १६८। ६. हमारा हस्तलेख पृष्ठ २६, पूना संस्क० पृष्ठ २१ । .
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