________________
२६२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रथम वार्तिक के उदाहरण 'वासवदत्ता, सुमनोत्तरा" और प्रत्युदाहरण ‘भैमरथी' तथा द्वितीय वार्तिक के उदाहरण 'दैवासुरम्, राक्षोसुरम्' दिये हैं।
श्लोक-काव्य-महाभाष्य ४।२।६६ में तित्तिरिप्रोक्त श्लोकों का उल्लेख मिलता है-तित्तिरिणा प्रोक्ताः श्लोका इति । तित्तिरि वैशम्पायन का कनिष्ठ भ्राता ओर उसका शिष्य था। वैशम्पायन का दूसरा नाम चरक था। उसका चरक नाम उसके कुष्ठी (=चरकी) हो जाने के कारण प्रसिद्ध हुअा था। इसी चरक द्वारा प्राक्त चारक
श्लोकों का निर्देश काशिकावृत्ति ४।३।१०७ तथा अभिनव शाकटायन १. व्याकरण की चिन्तामणिवृत्ति ३।१।१७१ में मिलता है । सायण ने
माधवीया धातुवृत्ति में उखप्रोक्त प्रौखीय श्लोकों का उल्लेख किया है। पाणिनि ने अष्टाध्यायी ४।३।१०२ में तित्तिरि और उख का साक्षात् निर्देश किया है। चरक का उल्लेख अष्टाध्यायी ४।३।
१०७ में मिलता है। काशिका २।४।२१ में वाल्मीकि द्वारा निर्मित १५ श्लोकों का निर्देश मिलता है। सरस्वतीकण्ठाभरण ४।३।२२७ की
हृदयहारिणी टीका में पिप्पलादप्रोक्त श्लोकों का उल्लेख है । काशिकाकार ने 'कृते ग्रन्थे" सत्र के उदाहरण 'वाररुचाः श्लोकाः, हैकुपादो ग्रन्थः, भैकुराटो ग्रन्थः, जालूकः' दिये हैं । इन में कौनसा ग्रन्थ पाणिनि से प्राचीन है, यह अज्ञात है । वररुचिकृत श्लोक निश्चय ही पाणिनि से अर्वाचीन हैं । यह वररुचि वातिककार कात्यायन है । पतञ्जाल ने महाभाष्य ४।३।१०१ में 'वाररुच काव्य' का निर्देश किया है । जैन शाकटायन की अमोघा और चिन्तामणि वृति ३।१॥ १८६ में 'वाररुचानि वाक्यानि' पाठ मिलता है, यह पाठ प्रशद्ध है।
यहां शद्ध पाठ 'वाररुचानि काव्यानि' होना चाहिए । जल्हण की २५ सूक्तिमुक्तावली में राजशेखर का निम्न श्लोक उद्धृत है
१. सुमनोत्तर की कहानी बौद्ध वाङ्मय में भी प्रसिद्ध है।
२. पं० भगवद्दतजी विचिरत 'वैदिक वाङ्मय का इतिहास' भाग १, पृष्ठ २८१, द्वि० सं०।
३. हमारा 'दुष्कृताय चरकाचार्यम् मन्त्र पर विचार' नामक निबन्ध । वैदिक-सिद्धन्त-मीमांसा, पृष्ठ १७६-१९२ ।
५. तित्तिरिवरतन्तुखण्डिकोखाच्छण् । ४. काशी संस्क० पृष्ठ ५६ । ६. कठचरकाल्लुक् ।
७. अष्टा० ४।३।११.६।
३०