SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास निर्देश नहीं किया, परन्तु गणपाठ ४।२।६० तथा ४।४।१०२ में आयुर्वेद पद पढ़ा है । आयुर्वेद के कौमारभृत्य तन्त्र को एकमात्र उपलब्ध काश्यपसंहिता के प्रवक्ता भगवान् काश्यप के कल्पसूत्र का उल्लेख पाणिनि ने अष्टाध्यायी ४।३।१०३ में किया है, और व्याकरण का अष्टाध्यायी १।२।२५ में । शल्यतन्त्र की सुश्रुत संहिता पाणिनि से प्राचीन है ! काशिका ६।२।६९ के 'भार्यासोश्रतः' उदाहरण में सुश्रुतापत्यों का उल्लेख है । चरक की मूल अग्निवेश संहिता के प्रवक्ता अग्निवेश का नाम गर्गादिगण में पढ़ा है। रसतन्त्र प्रणेता प्राचार्य व्याडि स्वयं पाणिनि का सम्बन्धी है । अनेक विद्वान् इसे पाणिनि के मामा का पुत्र=ममेरा भाई मानते हैं । परन्तु हमारा विचार है कि यह पाणिनि का मामा था । यह हम पूर्व विस्तार से लिख चुके हैं। १५-१६. पदपाठ-क्रमपाठ-पाणिनि ने उक्थादिगण में तीन पद एक साथ पढ़े हैं—'संहिता, पद, क्रम । इस साहचर्य से विदित होता है १५ कि यहां पठित 'पद' पार 'क्रम' शब्द निश्चय ही वेद के पदपाठ और क्रमपाठ के वाचक हैं । पाणिनि ने प्रत्ययान्तर के विधान के लिये क्रम और पद का निर्देश क्रमादिगण में भी पुनः किया है। पदपाठ से सम्बद्ध अवग्रह का साक्षात् निर्देश पाणिनि ने छन्दस्य॒दवग्रहात् सूत्र से किया है । ऊदनोर्दशे सूत्र में दीर्घ ऊकारादेश का विधान भी अवग्रह को २० दष्टि से किया है, ऐसा भाष्यकार का कथन है। ऋग्वेद के शाकल्य प्रोक्त पदपाठ के कुछ विशेष नियमों का निर्देश पाणिनि ने 'सम्बुद्धी शाकल्यस्येतावनार्षे, उन उँ' सूत्रों में किया है । शाकल्प के पदपाठ की एक भूल यास्क ने अपने निरुक्त में दर्शाई है।" पतञ्जलि ने १. पूर्व पृष्ठ १६० । २. अष्टा ४।१।१०५॥ ४. देखो संग्रहकार व्याडि नामक अगला अध्याय। ४. पूर्व पृष्ठ १६६ । ५. अष्टा० ४।२।६०॥ ६. अष्टा० ४।२।६१॥ ७. अष्टा० ८।४।२६॥ ८. अष्टा० ६॥३॥६॥ ६. न उदनोर्देश इत्येवोच्येत ? ...वग्रहे दोषः स्यात् । १०. अष्टा० १।१।१६-१८॥ ११. वायः-वा इति च य इति च चकार शाकल्यः, उदात्तं वेवमाख्यातम भविष्यदसुसमाप्तश्चार्थः। ६।२८॥ ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy