SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य पाणिनि के समय विद्यमान संस्कृत वाङ्मय २८७ का ग्रहण होना चाहिए, जिन में भिक्षुत्रों के रहन-सहन व्यवहार आदि नियमों का विधान हो । सम्भव है इन्हीं प्राचीन भिक्षुसूत्रों के आधार पर बौद्ध भिक्षयों के नियम बने हों। भिक्षयों की जीविका का साधन 'भिक्षा' पर लिखे गये ग्रन्थ का संकेत अष्टाध्यायी ४।३। ७३ के ऋगयनादि गण में मिलता है।' नटसूत्र-अष्टाध्यायी ४।३।११०, १११ में शिलाली और कृशाश्व प्रोक्त नट सूत्र का निर्देश उपलब्ध होता है ।' काशिका के अनुसार नटसम्बन्धी किसी प्राम्नाय का उल्लेख अष्टाध्यायी ४।३।१२६ में लिलता है। अमरकोश २।१०।१२ में नटों के शैला लिन, शैलूष, जायाजीव, कृशाश्विन और भरत पर्याय लिखे हैं। शैलूष पद यजुः १० संहिता ३०।६ में भी मिलता है । सम्भवतः ये नटसूत्र भरतनाट्यशास्त्र जैसे नाट्यशास्त्रविषयक ग्रन्थ रहे होंगे। १३. इतिहास पुराण-पाणिनि के प्रोक्ताधिकार के प्रकरण में इन का निर्देश नहीं किया। चान्द्र व्याकरण ३।१।७१ की वत्ति और भोजदेवविरचित सरस्वतीकण्ठाभरण ४।३।२२६ की हृदय- १५ हारिणो टीका में 'कल्पे' का प्रत्युदाहरण काश्यपीया पुराणसंहिता' दिया है। पाणिनि द्वारा निर्दिष्ट काश्यपप्रोक्त कल्प, व्याकरण और छन्दःशास्त्र का निर्देश हम पूर्व कर चुके हैं । हतिहासान्तर्गत महाभारत का साक्षात् उल्लेख पाणिनि ने अष्टाध्यायी ६।२।३८ में किया है। इस से स्पष्ट है कि पाणिनि से पूर्व २० व्यास की भारत संहिता महाभारत का रूप धारण कर चुकी थी। ___ महाभारत से ज्ञात होता है कि उस समय इतिहास पुराण के अनेक ग्रन्थ विद्यमान थे । सम्प्रति उपलभ्यमान पुराण तो अाधुनिक हैं. परन्तु इन की प्राचीन ऐतिह्यसम्बन्धी सामग्री अवश्य प्राचीन पुराणों और इतिहासग्रन्थों से संकलित की गई है। पाणिनि के 'कृत' २५ प्रकरण से कुछ प्राचीन इतिहासग्रन्थों का ज्ञान होता है । उन का उल्लेख हम अगले प्रकरण में करेंगे। १४. आयुर्वेद-पाणिनि ने आयुर्वेद के किसी ग्रन्थ का साक्षात् १. काशिका में इसी गण के पाठान्तर में 'भिक्षा' शब्द का उल्लेख मिलता है। २. पूर्व पृष्ठ २८६ की टि० ४। ३० ३. महान् ब्रीह्यपरागृष्टीश्वासजाबालभारभारतहैलिहिलरौरवप्रवृद्धेषु ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy