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________________ २८६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास हैं। रात र माण्डव्य के मत भट्ट उत्पल ने बृहत्संहिता की विवृत्ति (पृष्ठ १२४८) में भी दिये हैं । सैतव का मत वृत्तरत्नाकर के दूसरे अध्याय में भी उद्धृत है । इस प्रकार पाणिनि के काल में ७ प्राचीन और १ पिङ्गल कृत: = ८ छन्दः शास्त्र अवश्य विद्यमान थे । वैदिक५ छन्दोमीमासा के चतुर्थ अध्याय के अन्त में हम ने ३० छन्दःशास्त्र - प्रवक्ता आचायों का उल्लेख किया है ( पृष्ठ ६२-६४ द्वि० सं०) ।' ११. ज्योतिष -- पाणिनि ने उक्थादिगण में एक गणसूत्र पढ़ा है - द्विपदी ज्योतिष । इस में से किसी ज्योतिश्शास्त्रसंबन्धिनी 'द्विपदो' दो पादबाली' पुस्तक का उल्लेख है । ज्योतिश्शास्त्र से १० संबन्ध रखने वाले 'उत्पात, संवत्सर, मूहूर्त' संबन्धी ग्रन्थों का निर्देश गणपाठ ४ | ३ | ७२ में मिलता है । नैमित्तिक मौहूर्तिक रूपधारी गुप्तचरों का वर्णन कौटिल्य अर्थशास्त्र में मिलता । नक्षत्रों का वर्णन पाणिनि ने तीन प्रकरणों (४/२/३ - ५,११,२२, ४१३/३४-३७ ) में किया है। इन प्रकरणों से विस्पष्ट है कि पाणिनि के काल में ज्योति १५ श्शास्त्र की उन्नति पराकाष्ठ पर थी । 1 १२. सूत्रग्रन्थ - पाणिनि के समय अनेक विषयों के सूत्र विद्यमान थे । शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द आदि अनेक विषयों के सूत्रग्रन्थों का वर्णन हम पूर्व कर चुके हैं । उन से अतिरिक्त जिन सूत्रग्रन्थों का निर्देश पाणिनीय शब्दानुशासन में मिलता, वे इस प्रकार हैं - २० भिक्षुसूत्र - पाणिनि ने अष्टाध्यायो ४ | ३ | ११०, १११ में पाराशर्य और कर्मन्दप्रोक्त भिक्षुसूत्रों का साक्षात् उल्लेख किया है। पाराशरी भिक्षु ब्राह्मणों के पारस्परिक विरोध का उल्लेख हर्षचरित उच्छ्वास ८ में मिलता है । भिक्षुसूत्र से यहां किस प्रकार के ग्रन्थों का ग्रहण अभिप्रत है, यह प्रज्ञात है । कई विद्वान् भिक्षसूत्र का अर्थ २५ वेदान्तविषयक सूत्र करते हैं, अन्य इसे सांख्यशास्त्र के प्राचीन सूत्र मानते हैं । सांख्याचार्य पञ्चशिख प्रादि के लिए भिक्षु पद का व्यव - हार देखा जाता है । हमारा विचार कि यहां भिक्षुसूत्र से उन ग्रन्थों १. इन के परिचय के लिए हमारा 'छन्द: शास्त्र का इतिहास' ग्रन्थ देखना चाहिए । यह अभी प्रकाशित नहीं हुआ । ".. ३ २. अष्टा० ४। २ ६० ।। . नैमित्तिक मौहूर्तिकव्यञ्जना ॥१॥१३॥ ४. पाराशयं शिलालिभ्यां भिक्षुनटसूत्रयोः कर्मन्दकृशाश्वादिनिः ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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