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आचार्य पाणिनि के समय विद्यमान संस्कृत वाङमय
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है। महाभारत शान्ति पर्व ३४२।१०४ से व्यक्त है कि आचार्य गालव ने गालवीय शिक्षा ग्रन्थ रचा था।' पाणिनि ने अष्टाध्यायी ८।४।६७ में गालव का निर्देश किया है। प्राचार्य प्रापिलि की शिक्षा सम्प्रति उपलब्ध है। प्रापिशलि का उल्लेख अष्टाध्यायी ६।१।६२ में मिलता है। पाणिनीय शिक्षासूत्रों में भी साक्षात् प्रापिशलि का ५ निर्देश किया है। इस का एक सुन्दर संस्करण हम ने प्रकाशित किया है। पाणिनि ने स्वयं शिक्षासूत्र रचे थे । उन्हीं के आधार पर श्लोकाकात्मक पाणिनीयशिक्षा की रचना हुई। इस श्लोकात्मक पाणिनीयशिक्षा का अधिक प्रचार होने से मूल सूत्रग्रन्थ लुप्त हो गया। इस लुप्त सूत्रग्रन्थ के उद्धार का श्रेय स्वामी दयानन्द सरस्वती को है। उन्होंने १० महान् प्रयत्न से इसका एक हस्तलेख प्राप्त करके उसे हिन्दीव्याख्यासहित 'वर्णोच्चारणशिक्षा के नाम से प्रकाशित किया। स्वामी दयानन्द को पाणिनीयशिक्षा का जो हस्तलेख प्राप्त हुअा था, वह अनेक स्थानों पर खण्डित था। अब इस शिक्षा का दूसरा ग्रन्थ भी उपलब्ध हो गया है । उसके द्वारा यह आर्ष ग्रन्थ अब पूर्ण हो जाता है । १५
पाणिनीयशिक्षा के लघुपाठ के सप्तम प्रकरण में कौशिकशिक्षा के कुछ श्लोक उद्धत हैं। उन से स्पष्ट है कि पाणिनि के समय कौशिकशिक्षा भी विद्यमान थी। चारायणी शिक्षा का उल्लेख हम इसी ग्रन्थ में पूर्व पृष्ठ ११५ पर कर चुके हैं। गौतमशिक्षा नाम से एक ग्रन्थ काशी से प्रकाशित 'शिक्षासंग्रह' में छपा है । यह रचनाशैली २० से प्राचीन आर्ष ग्रन्थ प्रतीत होता है। इसी शिक्षासंग्रह में नारदी और माण्डूकी शिक्षाएं भी छपी हैं । वे भी प्राचीन आर्ष ग्रन्थ हैं। इनके अतिरिक्त जितनी शिक्षाएं शिक्षासंग्रह में मुद्रित हैं, वे सब अर्वाचीन हैं। भारद्वाजशिक्षा के नाम से एक शिक्षा छपी है। ग्रन्थ के
• १. क्रमं प्रणीय शिक्षां च प्रणयित्वा स गालवः ।
२. नोदात्तस्वरितोदयमगार्ग्यकाश्यपगालवानाम् । ३. वा सुप्यापिशलेः। ४. स एवमापिशलेः पञ्चदशभेदख्या वर्णधर्मा भवन्ति । वृद्धपाठ ८॥२५॥
५. इस सूत्रात्मक शिक्षा के भी दो पाठ हैं । एक लघु पाठ दूसरा वृद्ध पाठ । स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रकाशिन पाठ लघु पाठ है । और दूसरा उपलब्ध हुआ पाठ वृद्ध पाठ है । हम ने 'शिक्षा-सूत्राणि' में दोनों पाठों ३० का सम्पादन करके विस्तृत भूमिका समित प्रकाशन किया है।