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________________ २८० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास में प्रत्यय-विधान किया है । भोजदेव ने भी चान्द्र व्याकरण का हि अनुसरण किया है।' इस प्रकरण में प्राम्नाय शब्द से किन ग्रन्थों का ग्रहण है, यह अस्पष्ट हैं। हमारा विचार है कि यहाँ आम्नाय पद का अभिप्राय प्रत्येक शास्त्र के मूल ग्रन्थों से है। ५ ६. अनुकल्प-अष्टाध्यायी ४। २ । ६० के उक्थादिगण में 'अनुकल्प' का निर्देश है । अनुकल्प से पाणिनि को क्या अभिप्रेत है, यह अज्ञात है । सम्भव है यहां अनुकल्प पद से कल्पसूत्रों के आधार पर लिखे गये याज्ञिक पद्धतिग्रन्थों का निर्देश हो । आश्वलायन गह्य की हरदत्त की अनाविला टीका (पृष्ठ १०८) में अनुकल्प का निर्देश है। एक प्राचीन 'कल्पानुपद' सूत्र मिलता है । वह सामवेदीय याजिक ग्रन्थ है । मनुस्मृति ३ । १४७ में प्रथमकल्प और अनुकल्प का निर्देश है। उसका अभिप्राय प्रधान और गौण से है। ७. शिक्षा-जिन ग्रन्थों में वर्गों के स्थान प्रयत्न आदि का उल्लेख है, वे ग्रन्थ 'शिक्षा' कहाते हैं। पाणिनीय सूत्रपाठ में शिक्षा१५ ग्रन्थों का साक्षात् उल्लेख नहीं मिलता, परन्तु गणपाठ ४।२।६१ में शिक्षा शब्द पढ़ा है और उसके अध्येता और विशेषज्ञ शैक्ष्यक कहाते थे । इस से व्यक्त है कि पाणिनि के काल में शिक्षा का पठनपाठन होता था, और उसके कई ग्रन्थ विद्यमान थे । काशिकाकार ने 'शौनकादिभ्यश्छन्दसि" के 'छन्दसि' पद का प्रत्युदाहरण 'शोनकोया २० शिक्षा' दिया है । ऋक्प्रातिशाख्य के व्याख्याकार विष्णुमित्र ने भी शौनकीय शिक्षा का निर्देश किया है। ऋप्रातिशाख्य के १३, १४ वें पटलों में वर्गों के स्थान प्रयत्न आदि का वर्णन होने से वे शिक्षा-पटल कहाते है । अत एव इन्हें वेदाङ्ग भी कहा है। सम्भव है काशिका के 'शौनकीया शिक्षा' प्रत्युदाहरण में इन्हीं का ग्रहण हो । एक शौन२५ कोया शिक्षा का हस्तलेख यडियार (मद्रास) के पुस्तकालय में विद्यमान है। यह प्राचीन आर्षग्रग्रन्थ है या अर्वाचीन, यह अज्ञात १. नटाभ्यो नृत्ते । सरस्वती कण्ठाभरण ४।३।२६१॥ २. अष्टा० ४।३।१०६॥ ३. भगवान् शौनको वेदार्थवित..... शिक्षाशास्त्र कृतवान् । ऋक्प्राति० वर्गद्वय-वृत्ति, पृष्ठ १३ । ३०४. चौदहवें 'पटल के अन्त में-कृत्स्नं च वेदाङ्गमनिन्द्य मार्षम् । श्लोक ६। ५. देखो सूचीपत्र भाग २, सन् १९२८, परिशिष्ट पृष्ठ २॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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