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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
४० प्रपाठक का कभी एक ही ताण्ड्य या छान्दोग्य ब्राह्मण था। प्राचार्य शंकर ने वेदान्त-भाष्य में मन्त्र-ब्राह्मण और छान्दोग्य उपनिषद् के वचन ताण्ड्य के नाम से उद्धृत किये हैं।' सायणाचार्य ताण्ड्य और षड्विंश ब्राह्मण में प्रपाठक के स्थान में अध्याय शब्द का व्यवहार करता है । छान्दोग्य उपनिषद् में भी प्रपाठक के स्थान में अध्याय शब्द का व्यवहार उपलब्ध होता है । अतः यह भी सम्भव है कि-चात्वारिंश नाम से पञ्चविंश, षड्विंश, मन्त्रब्राह्मण और छान्दोग्य उपनिषद् के सम्मिलित ४० अध्याय वाले ताण्ड्य ब्राह्मण
का निर्देश हो, और त्रैश नाम से पञ्चविंश तथा षड्विंश के सम्मिलित १० ३० अध्यायों का संकेत हो । सौ अध्याय वाले शतपथ के १५, ६०
और ८० अध्याय क्रमशः पञ्चदशपथ, षष्टिपथ और अशीतिपथ नाम से व्यवहृत होते हैं, यह अनुपद दर्शाएंगे। . 'शतषष्टेः षिकन् पथः" वार्तिक के उदाहरण में काशिकाकार ने
'शतपथ' और 'षष्टिपथ' का उल्लेख किया है। शतपथ का निर्देश १५ देवपथादिगण में मिलता है। शतपथ ब्राह्मण में १०० अध्याय हैं।
षष्टिपथ शतपथ का ही एक अंश है। नवमकाण्ड पर्यन्त शतपथ ब्राह्मण में ६० अध्याय हैं। नवमकाण्ड में अग्निचयन का वर्णन है। प्रतीत होता है कि वार्तिककार के समय में शतपथ के ६० अध्यायों
का पठन-पाठन विशेष रूप से होता था । काशिका २।११६ के २० 'साग्न्यधीते' उदाहरण से भी इसकी पुष्टि होती है, क्योंकि इस उदा
१. वेदान्त भाष्य ३।३।२६--ताण्डिनां..... देव सवितः..... मन्त्र ब्रा० १११॥१॥ वेदान्त भाष्य ३।३।२६–अस्ति ताण्डिनां श्रुतिः-अश्व इव रोमाणि ....."छा० उप० ८।१३।१॥ वेदान्त भाष्य ३।३।३६–ताण्डिनामुपनिषदि -
स प्रात्मा तत्त्वमसि...'छा० उप० ६।८७ इत्यादि । शंकराचार्य ने यहां २५ अर्वाचीन ताण्चय ब्राह्मण के अवयवभूत छान्दोग्य उपनिषद् और मन्त्र ब्राह्मण
के लिये से 'पुराणप्रोक्तेषु ब्राह्मणकल्पेषु' (४।३।१०५) सूत्र से विहित णिनि प्रत्ययान्त शब्द का किया है, वह चिन्त्य है । प्रतीत होता है उन्हें ताण्ड ब्राह्मण के पुराण और अर्वाचीन दो भेदों का ज्ञान नहीं था।
२. यह कात्यायन से भिन्न किसी प्राचार्य के श्लोकवात्तिक का एक अंश है। पूरा श्लोक काशिका में व्याख्यात है। महाभाष्य में इतना अंश ही व्यख्यात है।
३. अष्टा० ॥३॥१०॥
२. ९ ।
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