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________________ ३५ प्राचार्य पाणिनि के समय विद्यमान संस्कृत वाङ्मय २७३ __वायु आदि पुराणों में २८ व्यासों का वर्णन उपलब्ध होता है।' उन में कृष्ण द्वैपायन व्यास अट्ठाईसवां है। उससे विदित होता है कि कृष्ण द्वैपायन से पूर्व न्यूनातिन्यून २७ बार शाखा-प्रवचन अवश्य हो चुका था। पाणिनि ने 'त्रिशच्चत्वारिंशतोर्ब्राह्मणे संज्ञायां डण्" सूत्र में तीस । और चालोस अध्याय वाले 'श' और 'चात्वारिंश' संज्ञक ब्राह्मणों का निर्देश किया है। बैंश और चात्वारिंश नामों से किन ब्राह्मणग्रन्थों का उल्लेख है, यह अज्ञात है । सम्प्रति ऐतरेय ब्राह्मण में ४० अध्याय हैं । षड्गुरुशिष्य ने ऐतरेय ब्राह्मण की वृत्ति के प्रारम्भ में उसका 'चात्वारिंश' नाम से उल्लेख किया है। *श नाम ऐतरेय के १० प्रारम्भिक ३० अध्याओं का है, अन्तिम १० अध्याय अर्वाचीन हैं। इस की पुष्टि आश्वलायन गृह्य ३।४।४, कौषीतकि गृह्य २।५ तथा शांखायन गृह्य ४।६; ६१ के तर्पण प्रकरण में पठित ऐतरेय महैतरेय नामों से होती है। क्या ऐतरेय शब्द से प्राचीन ३० अध्याय और महैत रेय से उत्तरवर्ती १० अध्याय मिलाकर पूरे ४० अध्याय अभिप्रेत हैं ? १५ यह विचारणीय है । कौषीतकि और शांखायन ब्राह्मणों में भी ३० अध्याय उपलब्ध होते हैं। सम्भव है पाणिनि का श प्रयोग इन के लिए हो । कीथ के मत में पाणिनि ने चात्वारिंश शब्द से ऐतरेय का निर्देश किया और श शब्द से कौषीतकि का । पं० सत्यव्रत सामश्रमी के मत मेंपञ्चविंश के २५ प्रपाठक षविंश मन्त्र-ब्राह्मण छान्दोग्य उपनिषद् का प्रवचन आश्वलायन ने और पांचवें का शौनक ने किया । द्र० वैदिक वाङ्मय का इतिहास, ब्राह्मण आरण्यक भाग, ऐतरेय आरण्यक वर्णन। २५ १. वायु पुराण अ० २३ श्लोक ११४ से अन्त पर्यन्त । २. अष्टा० ५॥१॥६२॥ ३. त्रिशदध्यायाः परिमाणमेषां ब्राह्मणानां त्रैशानि ब्राह्मणानि, चात्वारिंशानि ब्राह्मणानि, कानिचिदेव ब्राह्मणान्युच्यन्ते । काशिका ५५११६२॥ ४. चात्वारिंशाख्यमध्यायाः चत्वारिंशदिति डण् । पृष्ठ २। =४० प्रपाठक
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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