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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
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वातिककरोक्त पुराण की सोमा-कात्यायन ने 'याज्ञवल्क्यादिभ्यः प्रतिषेधस्तुल्यकालत्वात्' कह कर याज्ञवल्क्य ब्राह्मण को भी प्राचीन बताया है। सभव है कात्यायन ने पाणिनि के 'पुराण-प्रोक्त' शब्द का अर्थ 'सूत्रकार से पूर्वप्रोक्त' इतना सामान्य हो स्वीकार किया हो । महाभाष्यकार ने इस वार्तिक पर आदि पद से सौलभ ब्राह्मण का निर्दश किया है । इससे इतना स्पष्ट है कि याज्ञवल्क्य और सौलभ ब्राह्मण का प्रवचन पाणिनि से पूर्व हो गया था।
वेद की शाखाओं का अनेक बार प्रवचन--सर्ग के आदि से लेकर कृष्ण द्वैपायन व्यास और उन के शिष्य-प्रशिष्यों पर्यन्त वेद की शाखाओं १. का अनेक बार प्रवचन हुप्रा है । भगवान् वेदव्यास और उनके शिष्य
प्रशिष्यों द्वारा जो शाखागों का प्रवचन हुअा, वह अन्तिम प्रवचन है। छान्दोग्य उपनिषद् और जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण से विदित होता है कि ऐतरेय ब्राह्मण के प्रवक्ता महिदास ऐतरेय की मृत्यु इन
की रचना से बहुत पूव हो चुकी थी। अत एव इन ग्रन्थों में उसके १५ लिये परोक्षभूत की क्रियाओं का प्रयोग हुअा है।' षड्गुरुशिष्य ने
ऐतरेय ब्राह्मण की वृत्ति के प्रारम्भ में ऐतरेय को याज्ञवल्क्य की इतरा=कात्यायनी नाम्नी पत्नी में उत्पन्न कहा है। वह सर्वथा काल्पनिक कहा है।
ऐतरेय ब्राह्मण कृष्ण द्वैपायन व्यास से पुराण-प्रोक्त है। परन्तु उस में शाकल संहिता का परोक्षरूप से उल्लेख मिलता है। इसका कारण यह है कि ऐतरेय ब्राह्मण का वर्तमान प्रवचन शौनक वा उस के शिष्य आश्वलायन का है । उसी ने अन्त के १० अध्याय भी जोड़ दिये हैं ! मूल ऐतरेय में ३० हो अध्याय थे ।
१. महाभाष्य ४।३।१०५॥ २५ २. यानि पूर्वैर्देवैर्विद्वद्भिर्ब्रह्माणमारभ्य याजकल्क्यवात्स्यायनजैमिन्यन्तै
ऋषिभिश्चैतरेयशतपथादीनि भाष्याणि रचितान्यासन्...."। ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, भाष्यकरण-शङ्कासमाधान विषय, पृष्ठ ३६४, रालाकट्र सं० ।
१. पर्व पृष्ठ १८५। ४. आसीद् विप्रो याज्ञवल्क्यो द्विभार्य:, तस्य द्वितीयामितरेति चाहुः । स ज्येष्ठयाऽकृष्टचितः प्रियां तामुक्त्वा ३० द्वितीयामितरेति होवे ॥
५. पूर्व पृष्ठ १८५-१८६ । ६. द्र०--ऐतरेय आरण्यक के प्रथम तीन अध्याय ऐतरेय प्रोक्त हैं। चौथे