SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य पाणिनि के समय विद्यमान संस्कृत वाङमय २७१ सौलभ ब्राह्मण संभवत: उसी क्षत्रियकुल-संभूता ब्रह्मवादिनी संन्यासिनी सुलभा द्वारा प्रोक्त होगा, जिसका विदेह जनक के साथ ब्रह्मविद्या-विषयक संवाद हया था।' शांखायन गृह्य ४।६ तथा कौषीतकि गृह्म २।५ के तर्पण में 'सुलभा मैत्रयी' पाठ मिलता है । आश्वलायन आदि गृह्यसूत्रों के ऋषितर्पण में भी सुलभा का नाम उपलब्ध होता ५ है । अतः सम्भव है सौलभ ब्राह्मण ऋग्वेद का हो । ताण्ड-ताण्डय के सम्बन्ध में विशेष विचार-'तण्ड' शब्द गर्गादिगण ४।१।१०५ में पठित है। उस का गोत्रापत्य ताण्डय वैशम्पायनान्ते वासियों में अन्यतम है (द्र० काशिका ४।३।१०४)। 'तण्ड से प्रोक्त ब्राह्मण का अध्ययन करने वाले' इस अर्थ में अष्टा० १० ४।१।१०५ से णिनि प्रत्यय होने से वे ताण्डिन: कहाते हैं। ताण्ड्य प्रोक्त ब्राह्मण का अध्ययन करने वाले ताण्डाः कहाते हैं । यहां सौलभानि ब्राह्मणानि के समान अण प्रत्यय होता है। ताण्ड से आम्नाय अर्थ में वञ् (अष्टा० ४।३।१२६) होकर 'ताण्डकम्' प्रयोग होता है। तण्ड और ताण्डय दोनों से प्रोक्तार्थ में औसर्गिक अण् प्रत्यय होकर १५ ताण्डाः समानरूप भी निष्पन्न होता है। लाट्यायन श्रौत में एक सूत्र है-'तथा पुराणं ताण्डम्" । ऐसा ही सूत्र द्राह्यायण श्रौत २११॥३२ में भी है। इन दोनों में ताण्ड का पुराण विशेषण दिया है। इस सूत्र से पाणिनि द्वारा दर्शाए गये ब्राह्मणों के पुराण और अर्वाचीन दो विभागों तथा काशिका वृत्ति २० ४।२।६६ में पुराण ब्राह्मणों में निर्दिष्ट ताण्ड नाम की पुष्टि होती है। लाटयायन के सूत्र से यह भी विदित होता है कि ताण्ड ब्राह्मण भी दो प्रकार का था-एक प्राचीन और दूसरा अर्वाचीन । सम्भवतः वर्तमान ताण्ड्य ब्राह्मण अर्वाचीन हो । संक्षिप्तसार व्याकरण के टीकाकार गोयीचन्द्र पौत्थासानिक ने २५ 'प्रयाज्ञवल्क्यादेाह्मणे सूत्र की वृत्ति में पुराण-प्रोक्त ऐतरेय और शाटयायन ब्राह्मण के साथ 'भागुरि' ब्राह्मण का उल्लेख किया है। यह ब्राह्मण भी पुराण-प्रोक्त है । एक पुराण-प्रोक्त पैङ्गलायनि ब्राह्मण बौधायन श्रौत २७ में उद्धृत है। १. महाभारत शान्तिपर्व अ० ३२०। ३. तद्धित प्रकरण ४५४ । २. लाटया० श्रोत ७।१०।१७॥ ३० ४. पूर्व पृष्ठ २०५, टि० २।।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy