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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
शार्ङ्गरव, साम्पेय, शाखेय, (?, शाभीय), स्कन्ध, स्कन्द, देवदत्तशाठ, रज्जुकठ, रज्जुभार, कठशाठ, कशाय, पुरुषासक, अश्वपेयः क्रोड,, काङ्कत ।
इन शाखाओं का विशेष वर्णन श्री पं० भगवद्दत्तजी कृत 'वैदिक ५ वाङमय का इतिहास, प्रथम भाग में देखना चाहिये।
शाखामों से सम्बद्ध पदपाठ तथा क्रमपाठ का वर्णन आगे करेंगे।
२. ब्राह्मण-वेद की जितनी शाखाएं प्रसिद्ध हैं, प्रायः उन सब के ब्राह्मग्रन्थ भी पुराकाल में विद्यमान थे। ब्राह्मणग्रन्थों का प्रवचन
भी उन्हीं ऋषियों ने किया था, जिन्होंने उन की संहिताओं का । अतः १० पूर्वोद्धत शाखाग्रन्थों के निर्देश के साथ-साथ उन के ब्राह्मणग्रन्थों का
भी निर्देश समझना चाहिये । इस सामान्य निर्देश के अतिरिक्त पाणिनीय सूत्रों में निम्न ब्राह्मणग्रन्थों का उल्लेख मिलता है
ब्राह्मणों के भेद-पाणिनि ने 'छन्दोब्राह्मणानि च तद्विषयाणि" सूत्र में ब्राह्मणग्रन्थों का सामान्य निर्देश किया है । 'पुराणप्रोक्तेषु १५ 'ब्राह्मणकल्पेषु सूत्र में ब्राह्मणग्रन्थों के प्राचीन और अर्वाचीन दो
विभाग दर्शाए हैं। ___ पाणिनि-निर्दिष्ट पुराणप्रोक्त और अर्वाक्प्रोक्त ब्राह्मणग्रन्थों की सीमा का परिज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। हमारे विचार में वह सीमा
है-कृष्ण द्वैपायन का शाखा-प्रवचन । अर्थात् कृष्ण द्वैपायन के शाखा२० प्रवचन से पूर्व प्रोक्त पुराण ब्राह्मण और उस के शिष्य-प्रशिष्यों द्वारा
प्रोक्त अर्वाचीन हैं । इस की पुष्टि काशिकाकार के याज्ञवल्क्यादयोऽचिरकाला इत्याख्यानेषु वातों (४।३।-०५) वचन से भी होती हैं।
काशिकाकार जयादित्य ने पुराण-प्रोक्त ब्राह्मणों में 'भाल्लव, शाट्यायन, ऐतरेय' का और अर्वाचीन ब्राह्मणों में 'याज्ञवल्क्य' अर्थात शतपथ ब्राह्मण का निर्देश किया है। शतपथब्राह्मण का दूसरा नाम वाजसनेय ब्राह्मण भी है। इस का निर्देश गणपाठ ४।२।१०६ में उपलब्ध होता है । अष्टाध्यायी ४।२।६६ की काशिकावृत्ति में भाल्लव आदि प्राचीन ब्राह्मणों के साथ 'ताण्ड', और अर्वाचीन ब्राह्मणों में याज्ञवल्क्य के साथ 'सौलभ' ब्राह्मण का भी नाम मिलता है। यह
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१. अष्टा० ४।२।६६॥
२. अष्टा० ४।३।१०।।