________________
आचार्य पाणिनि के समय विद्यमान संस्कृत वाङ् मय
२६ε
शाकल, प्रार्चाभ, मौद्गल, कठ, कलाप, कौथुम, लौगाक्ष, मौद, पैप्पलाद | ७|४ | ३८ - काठक |
महाभाष्य ४।२।६६ में " क्रौड" और "काङ्कत", तथा पाणिनि से प्राचीन आपिशल शिक्षा के षष्ठ प्रकरण में “सात्यमुग्रीय" और "राणायनीय " का नाम मिलता है ।' पाणिनि ने सात्यमुनि प्राचार्य का ५ निर्देश अष्टा० ४।१।८१ में साक्षात् किया है ।
इन नामों में जो नाम गणपाठ में आये हैं, उन में कतिपय सन्दिग्ध हैं, और कतिपय नामों में केवल शाब्दिक भेद है । यथास्कन्ध और स्कन्द तथा साङ्गरव और शार्ङ्गरव आदि ।
संहिता ग्रन्थों के उपर्युक्त नाम सूत्र क्रमानुसार लिखे हैं । इन १० का वेदानुसार सम्बन्ध इस प्रकार है
ऋग्वेद - बहवृच, शाकल, मौद्गल तथा हरदत्त के मत में काठक ।
इनमें शाकल संहिता पाणिनि से पुराणप्रोक्त ऐतरेय ब्राह्मण १४।५ में उद्धृत है ।
शुक्ल यजुर्वेद - वाजसनेय, शापेय ।
कृष्ण - यजर्वेद - तैत्तिरीय, वारतन्तीय, खण्डिकीय, औौखीय, हारिद्रव, तौम्बुरव प्रौलप, छागल, आलम्ब, पालङ्ग, कमल, प्रभ आरुण, ताण्ड, ?, श्यामायन, खाडायन, कठ, चरक, कालाप |
१५
सामवेद- तलवकार, सात्यमुग्रीय, राणायनीय, कौथुम, लौगाक्ष, २० छन्दोग |
श्रथर्ववेद - शौनक, मौद, पैप्पलाद ।
निश्चित - वेद-सम्बन्ध - वे शाखाएं जिन का सम्बन्ध हम किसी वेद के साथ निश्चित नहीं कर सके - प्रौक्थिक, ' याज्ञिक, साङ्गरव,
१. छन्दोगानां सात्यमुग्रिराणयनीयाः ह्रस्वानि पठन्ति । द्र० - ननु च २५ भोश्छन्दोगानां सात्यमुग्रिराणयनीया अर्धमेका रमर्धमोकारं चाधीयते । महा० एग्रो सूत्र, तथा १।१।४७ ॥ २. पदमञ्जरी ७|४|३८|| महाभाष्य २२ २६ के 'कठश्चायं बह, वृश्च' पाठ से कठ शाखा का संबन्ध ऋग्वेद के साथ नहीं है, यही ध्वनित होता है । ३. ऐतरेय ब्राह्मण का वर्तमान पाठ शौनक प्रोक्त है । ४. उक्थसूत्र गार्ग्यकृत उपनिदान के अन्त स्मृत हैं ।
३०