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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
१. दृष्ट-दृष्ट शब्द का अर्थ है-देखा गया । इस विभाग में पाणिनि ने उस वाङमय का निर्देश किया है, जो न किसी के द्वारा कृत है और न प्रोक्त । अर्थात् पूर्वतः विद्यमान वाङमय के विषय में ही
किन्हीं विशेष विषयों का जो विशिष्ट दर्शन है, वह दृष्ट के अन्तर्गत ५ समझा जाता है।
२. प्रोक्त-प्रोक्त का शब्दार्थ है-प्रकर्ष रूप में उक्त कथित । इस विभाग में वह सारा वाङमय आता है, जो पूवतः विद्यमान स्वस्व-विषयक वाङमय को ही देश-काल की परिस्थिति के अनुसार
ढालकर विशेष रूप में शिष्यों को पढ़ाया जाता है । इस विभाग में १० सम्पूर्ण शास्त्रीय वाङमय का अन्तर्भाव होता है।
३. उपज्ञात-उपज्ञात शब्द का अर्थ है-ग्रन्थप्रवक्ता द्वारा स्व. मनीषा से विज्ञात । इसके अन्तर्गत प्रोक्त ग्रन्थों के वे विशिष्ट अंश सगृहीत होते हैं, जिन्हें पूर्व ग्रन्थों का देशकालानुसार प्रवचन करते
हुए प्रवक्ता ने अपनो अपूर्व मेधा के आधार पर सर्वथा नए रूप में १५ सन्निविष्ट किया हो।
४. कृत-इस का सामान्य अर्थ है-बनाया हुअा। इस विभाग में वह वाङमय संगृहोत होता है, जिन की पूरी वर्णानुपूर्वी ग्रन्थकार की अपनी हो।
५. व्याख्यान--इस का भाव स्पष्ट है । समस्त टीका टिप्पणी २० और व्याख्या ग्रन्थ इसके अन्तर्गत आते हैं ।
हम भी इसी विभाग के अनुसार पाणिनीय व्याकरण में उल्लि. खित प्राचीन वाङमय का संक्षिप्त वर्णन करेंगे।
१. दृष्ट पाणिनि सूत्र का है--दृष्ट साम' । यहां साम शब्द सामवेद में पठित ऋचारों के लिए प्रयुक्त नहीं हुआ, अपितु जैमिनि के 'गोतिष सामाख्या लक्षण के अनुसार ऋचारों के गान का वाचक है। काशिका वृत्ति में 'दष्टं साम' सूत्र के उदाहरण 'क्रौञ्चम्, वासिष्ठम्, वैश्वामत्रम्' दिये हैं। वामदेव ऋषि से दृष्ट वामदेव्य साम के लिये
'वामदेवाड्ड्यड्डयौ च पृथक सूत्र बनाया है । वार्तिककार ३० १. अष्टा० ४।२।७॥ २. मीमांसा २॥१॥३६॥ ३. अय्टा० ४।२।८॥