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________________ छठा अध्याय आचार्य पाणिनि के समय विद्यमान सस्कृत वाङ्मय पाणिनीय अष्टाध्यायी से भारतीय प्राचीन वाङमय और इतिहास पर बहुत प्रकाश पड़ता है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं । इस अध्याय में हम पाणिनि के समय विद्यमान उसी वाङ्मय का उल्लेख ५ करेंगे, जिस पर पाणिनीय व्याकरण से प्रकाश पड़ता है । यद्यपि हमारे इस लेख का मुख्य प्राश्रय पाणिनीय सूत्रपाठ और गणपाठ है, तथापि उसका प्राशय व्यक्त करने के लिये कहीं-कहीं महाभाष्य और काशिकावृत्ति का भी प्राश्रय लिया है। हमारा विचार है कि काशिकावृत्ति के जितने उदाहरण हैं, वे प्रायः प्राचीन वृत्तियों के १. आधार पर है, और सभी प्राचीन वृत्तियों का आधार पाणिनीय वृत्ति है। पाणिनि ने अपने शब्दानुशासन पर स्वयं वत्ति लिखी थी, यह हम 'अष्टाध्यायी के वृत्तिकार' प्रकरण में सिद्ध करेंगे। इस प्रकार काशिका के उदाहरण बहत अंश तक अत्यन्त प्राचीन और प्रामाणिक है। पाणिनि ने अपने समय के समस्त संस्कृत वाङमय को निम्न भागों में बांटा १. दृष्ट, २. प्रोक्त, ३. उपज्ञात, ४. कृत, ५. व्याख्यान । दष्टादि शब्दों का प्रर्थ-पाणिनि ने प्राचीन वाङमय के विभागीकरण के लिये जिन दृष्ट प्रोक्त उपज्ञात कृत और व्याख्यान २० शब्दों का व्यवहार किया है, उन का अभिप्राय इस प्रकार है १. सकिखीति अपचितपरिमाणः श्रृगालः किखी, अप्रसिद्धोदाहरणं चिरन्तनप्रयोगात् । पदमञ्जरी २॥१॥३॥ गाग १, पृष्ठ ३४४ । काशिका में 'ससखि' उदाहरण छपा है, वह अशुद्ध है। अवतप्तेनकुलस्थितं तवैतदिति चिरन्तनप्रयोगः । पदमञ्जरी २०१७॥ भाग १, पृष्ठ ३७१।। २. रामचन्द्र, भट्टोजि दीक्षित आदि अर्वाचीन वैयाकरणों ने उन प्राचीन उदाहरणों को, जिससे भारतीय पुरातन इतिहास और वाङ्मय पर प्रकाश पड़ता था, हटाकर साम्प्रदायिक उदाहरणों का समावेश करके प्राचीन वाङ्मय और इतिहास की महती हानि की है। २५
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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