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________________ २५८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास पाणिनीय शिक्षा की रचना पाणिनीय के अनुज पिङ्गल ने की थी।' ___तोलकाप्पिय नामक तामिल व्याकरण, जो ईसा से बहुत पूर्व का है, में पाणिनीय शिक्षा के श्लोकों का अनुवाद मिलता है। भर्तृहरि भी वाक्यपदीय की स्वोपज्ञ व्याख्या में इस शिक्षा का 'पात्मा बुद्धया समेत्यर्थान्' श्लोक को उद्धृत करता है ।' दो प्रकार के पाठ-श्लोकात्मिका पाणिनीय शिक्षा के भी दो पाठ हैं-एक लघु, दूसरा वृद्ध । लघु याजुष पाठ कहाता है, और वृद्ध आर्च पाठ। याजुष पाठ में ३५ श्लोक हैं, और आर्च पाठ में ६० श्लोक हैं। आर्च पाठ ११ वर्गअथवा खण्डों में विभक्त है। शिक्षा१० प्रकाश और शिक्षापञ्जिका टीकाएं लघु पाठ पर ही हैं । ___ सस्वर-पाठ-काशी से प्रकाशित शिक्षासंग्रह में पृष्ठ ३७८-३८४ तक आर्च पाठ का एक सस्वर-पाठ छपा है। इसमें स्वर-चिह्न बहुत अव्यवस्थित हैं । प्रतीत होता है लेखकों और पाठकों की उपेक्षा के कारण यह अव्यवस्था हुई। परन्तु इसके आधार पर इतना अवश्य १५ कहा जा सकता है कि मूल पाठ सस्वर था। २. जाम्बवती विजय इसका दूसरा नाम 'पातालविजय' भी है। इस महाकाव्य में श्रीकृष्ण का पाताल में जाकर जाम्बवती की विजय और परिणय कथा का वर्णन है । इस काव्य को पाणिनि-विरचित मानने में आधु२. निक लेखकों ने अनेक आपत्तियां उपस्थित की हैं। हम ने उन सब का सप्रमाण समाधान इस ग्रन्थ के 'काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि' शीर्षक तीसवें अध्याय में किया है । पाठक इस विषय में वह प्रकरण अवश्य देखें। अभिनव सूचना-कुछ समय हुमा काफिरकोट के पास से २५ पाकिस्तान के अधिकारियों को भामह के काव्यालङ्कार की किसी १. 'जेष्ठभ्रातृभिविहिते व्याकरणेऽनुजस्तत्र भगवान् पिङ्गलाचार्यस्तन्मतमनुभाव्य शिक्षां वक्तुप्रतिजानीते।' आदि में। २. द्र०—पार० एस० सुब्रह्मण्य शास्त्री का लेख, जर्नल प्रोरियण्टल रिसर्च, मद्रास, सन् १६३१, पृष्ठ १८३। ३. ब्रह्मकाण्ड श्लोक - ३० ११६, की व्याख्या में, पृष्ठ १०४, लाहौर संस्करण ।।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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