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पाणिनि और उसका शब्दानुशासन २५७ स्वामी दयानन्द सरस्वती ने जिन शिक्षासूत्रों को पाणिनि के नाम से प्रकाशित किया है, वे उनके द्वारा कल्पित हैं ।
हमने 'मूल पाणिनीय शिक्षा' शीर्षक लेख में डा० मनोमोहन घोष के लेख की सप्रमाण आलोचना करते हुए अनेक प्रमाणों की उपस्थित करके यह सिद्ध किया है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रकाशित ५ पाणिनीय शिक्षासूत्र उनके द्वारा कल्पित नहीं हैं, अपितु के वास्तविक रूप में पाणिनीय हैं, और अनेक प्राचीन ग्रन्थकारों द्वारा उद्धत हैं। हमारा यह लेख ‘साहित्य' पत्रिका (पटना) के वर्ष ७ अङ्क ४ (सन् १६५७) में प्रकाशित हुआ है । इस लेख के पश्चात् पाणिनीय शिक्षासूत्रों का एक कोश और उपलब्ध हो गया। उस से यह सर्वथा १० प्रमाणित हो गया कि स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रकाशित पाणिनीय शिक्षासूत्र वास्तविक हैं, काल्पनिक नहीं ।
हमारा संस्करण-हमने सन् १९४९ में पाणिनीय शिक्षासूत्रों का एक पाठ प्रापिशल और चान्द्र शिक्षासूत्रों के साथ प्रकाशित किया था। वह पाठ स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रकाशित ही था। १५
नया संस्करण -तत्पश्चात पाणिनीय शिक्षा का एक नया कोश उपलब्ध हो गया। हमने विविध ग्रन्थों के साहाय्य से पाणिनीय शिक्षासूत्रों के लघु और वृद्ध दोनों पाठों का सम्पादन किया है। उस में विभिन्न ग्रन्थों में उद्धृत समस्त पाणिनीय शिक्षासूत्रों का तत्तत् स्थानों पर निर्देश कर दिया है। प्रारम्भ में बृहत् भूमिका में इन सूत्रों २' के विषय में ज्ञातव्य सभी विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला हैं। शिक्षासूत्रों के पाणिनीयत्व में नये प्रमाण उपस्थापित किये हैं।
श्लोकात्मिका शिक्षा-इस शिक्षा के पाणिनि-प्रोक्त न होने का प्रत्यक्ष प्रमाण उसका प्रथम श्लोक ही हैअथ शिक्षा प्रवक्ष्यामि पाणिनीयं मतं यथा ।
२५ इस अन्तःसाक्ष्य की उपस्थिति में भी श्लोकबद्ध शिक्षा को 'पाणिनि-प्रोक्त कहना, मानना वा सिद्ध करने का प्रयत्न करना 'मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त' कहावत के अनुसार निस्सार है ।
शिक्षाप्रकाश-टीका के रचयिता के मतानुसार श्लोकात्मिका