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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
सूत्रों का भाषानुवाद भी साथ में दिया है । स्वामी दयानन्द सरस्वती के १० जनवरी सन् १८८० के पत्र से ज्ञात होता है कि उन्हें इस ग्रन्थ का हस्तलेख सन् १८७६ के अन्त में मिला था।' वर्णोच्चारणशिक्षा की भूमिका में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने स्वयं लिखा है___ऐसे ऐसे भ्रमों की निवृत्ति के लिये बड़े परिश्रम से पाणिनिमुनिकृत शिक्षा का पुस्तक प्राप्त कर उन सूत्रों की सुगम भाषा में व्याख्या करके वर्णोच्चारण विद्या की शुद्ध प्रसिद्धि करता हूं।'
पाणिनि से प्राचीन आपिशल शिक्षा का वर्णन हम पृष्ठ १५७१५८ पर कर चुके हैं। उसके साथ पाणिनीय शिक्षा की तुलना करने १० से प्रतीत होता है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती को पाणिनीय शिक्षा
सूत्रों का जो हस्तलेख मिला था, वह अपूर्ण और अव्यवस्थित था। जैसे आपिशल व्याकरण के सूत्र पाणिनीय व्याकरण के सूत्रों से मिलते हैं, और दोनों में आठ-पाठ अध्याय समान हैं, उसी प्रकार प्रापिशल
शिक्षा और पाणिनीय शिक्षा के सूत्रों में भी अत्यधिक समानता है, १५ और दोनों में आठ-पाठ प्रकरण हैं। ___शिक्षासूत्रों के दो पाठ-पाणिनीय शिक्षा-सूत्रों के अष्टाध्यायी के समान ही लघु और बृहत् दो प्रकार के पाठ हैं। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने जिस हस्तलेख के आधार पर शिक्षासूत्रों को प्रकाशित
किया था, वह लघु पाठ का था (और वह खण्डित भी था)। इस का २० दूसरा एक वृद्ध पाठ भी है, जिस में कुछ सूत्र और सूत्रांश अधिक हैं।
इन दोनों पाठों को हमने सम्पादित करके शिक्षा-सूत्राणि में प्रकाशित किया है।
क्या पाणिनीय शिक्षासूत्र कल्पित हैं-डा. मनोमोहन घोष एम० ए० ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से सन् १९३८ में [श्लोका२५ त्मिका] पाणिनीय शिक्षा का एक संस्करण प्रकाशित किया है । उस
की भूमिका में बड़े प्रयत्न से यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि
नामक ग्रन्थ में किया है । द्र०–दशम अध्याय, पृष्ठ २१८-२२३ (द्वि० सं०)।
१. 'मेरा कस्द है कि पेशतर शिक्षा पुस्तक जो छोटी हाल में तसनीफ हुई है, छपवाई जावे । द्र० 'ऋ० द० के पत्र और विज्ञापन' भाग २, पृष्ठ ३० ३१६ (तृ० सं०, सं० २०३७) ।