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________________ पाणिनि श्रौर उसका शब्दानुशासन १. धातुपाठ ३. उणादिसूत्र' २५५ २. गणपाठ ४. लिङ्गानुशासन ये चारों ग्रन्थ पाणिनीय शब्दानुशास के परिशिष्ट हैं । अत एव प्राचीन ग्रन्थकार इनका 'खिल' शब्द से व्यवहार करते हैं । इन ग्रन्थों का इतिहास द्वितीय भाग में लिया गया है, वहां देखिए । ५. श्रष्टाध्यायी की वृत्ति - पाणिनि ने अपने शब्दानुशासन का स्वयं बहुधा प्रवचन किया था । प्रवचनकाल में सूत्रार्थपरिज्ञान के लिये वृत्ति का निर्देश करना आवश्यक है । पाणिनि ने अपने ग्रन्थ की कोई स्वोपज्ञ वृत्ति रची थी, इसमें अनेक प्रमाण हैं । इसका विशेष वर्णन 'अष्टाध्यायी के वत्तिकार' प्रकरण में आगे किया जायगा । १० पाणिनि के अन्य ग्रन्थ १. शिक्षा पाणिनि ने शब्दोच्चारण के यथार्थ परिज्ञान के लिये एक छोटा सा सूत्रात्मक शिक्षाग्रन्थ बनाया था। इसके अनेक सूत्र व्याकरण के विभिन्न ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं ।" जिस प्रकार आचार्य चन्द्रगोमी ने १५ पाणिनीय व्याकरण के आधार पर अपने चान्द्र व्याकरण की रचना की, उसी प्रकार उसने पाणिनीय शिक्षासूत्रों के आधार पर अपने शित्रासूत्र रचे । अर्वाचीन श्लोकात्मक पाणिनीय शिक्षा का मूल ये ही शिक्षासूत्र हैं | श्लोकात्मक पाणिनीय शिक्षा का विशेष प्रचार हो जाने से सूत्रात्मक ग्रन्थ लुप्तप्रायः हो गया है । शिक्षासूत्रों का उद्धार - पाणिनि के मूल शिक्षा ग्रन्थ के पुनरुद्धार का श्रेय स्वामी दयानन्द सरस्वती को है । उन्होंने महान् परिश्रम से इसे उपलब्ध करके 'वर्णोच्चारण-शिक्षा' के नाम से संवत् १९३६ के अन्त में प्रकाशित किया था। छोटे बालकों के लाभार्थ १. उणादिसूत्र भी पाणिनीय है, इस के लिए देखिए इसी ग्रन्थ का २५ 'उणादिसूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्यता' शीर्षक २४ वां अध्याय । २. उपदेश: शास्त्रवाक्यानि सूत्रपाठ: खिलपाटश्च । काशिका १|३|२|| नहि उपदिशन्ति खिलपाठे ( उणादिपाठे ) । महाभाष्यदीपिका, हस्तलेख पृष्ठ १४६ ॥ पूना सं० पृष्ठ ११५ । ३. शिक्षासूत्राणि, पृष्ठ ९ - १८ टिप्प० । ४. इसका विशेष वर्णन हमने 'स्वामी दयानन्द के ग्रन्थों का इतिहास' ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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