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संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास 'अह' अकारारान्त, ऊधन् नकारान्त) ४१; (१५) 'विंशत्' आदि तकारान्त
और 'त्रिशति' चत्वारिंशति' आदि इकारान्त शब्दों का लोप ४२; (१६) पाणिनीय व्याकरण से प्रतीयमान कतिपय शब्दों का लोप ४४; (१७) 'छन्दोवत् कवयः कुर्वन्ति' नियम का रहस्य ४५; (१८) वैयाकरण-नियमों के माधार पर संस्कृतशब्दों के परिवतित रूपों की कल्पना करना दुस्साहस ४६; (१९-२०) भाषा में शब्द-प्रयोगों का कभी लोप होना और कभी पुनः प्रयोग होना ४७ । संस्कृतग्रन्थों में अप्रयुज्यमान संस्कृतशब्दों को हिन्दी फारसी
आदि भाषाओं में उपलब्धि-यथा पवित्रार्थक पाक, घर, जङ्ग, बाज, जज, ढूढ़ (क्रिया) आदि ५० । वैयाकरणों द्वारा आदिष्ट-रूपवाली धातुओं का स्वतन्त्र प्रयोग ५२ । प्राकृत आदि भाषायों द्वारा संस्कृत के लप्त प्रयोगों का संकेत ५६ । क्या अपशब्द साधु शब्दों का स्मरण करा कर अर्थ का बोध कराते है ? ५६ २-व्याकरण-शास्त्र की उत्पत्ति और प्राचीनता ५८
व्याकरण का आदि मूल ५८ । व्याकरणशास्त्र की उत्पत्ति ५६ । व्याकरण शब्द की प्राचीनता ६० । षडङ्ग शब्द से व्याकरण का निर्देश ६१ । व्याकरणान्तर्गत कतिपय संज्ञाओं की प्राचीनता ६१ । व्याकरण का प्रादि प्रवक्ता-ब्रह्मा ६२ । द्वितीय प्रवक्ता-बृहस्पति ६४ । व्याकरण का आदि संस्कर्ता-इन्द्र ६६ । माहेश्वर सम्प्रदाय ६७ । व्याकरण का बहुविध प्रवचन ६७ । पाणिनि से प्राचीन (८५) प्रवक्ता ६७ । आठ व्याकरण प्रवक्ता ६८ । नव व्याकरण ७० । पांच व्याकरण ७१ । व्याकरण शास्त्र के तीन विभाग ७१ । व्याकरण-प्रवक्ताओं के दो विभाग ७१ । पाणिनि से प्राचीन (२६ परिज्ञात) आचार्य ७१ । प्रातिशाख्य आदि वैदिक व्याकरणप्रवक्ता ७२ । प्रातिशाख्यों में उद्धृत (५९) प्राचार्य ७४ । पाणिनि से अर्वाचीन (१८) प्राचार्य ७८ । ३-पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित (१६) प्राचीन आचार्य ७९
१. शिव (महेश्वर) ७६ । २. बृहस्पति ८४ । ३. इन्द्र ८७; ऐन्द्र व्याकरण के सूत्र ६३ । ४. वायु ६७ । ५. भरद्वाज १८ । ६. भागुरि १०४, भामुरि व्याकरण के सूत्र १०६ । ७. पौष्करसादि ११० । ८. चारायण ११३, चारायण-सूत्र ११३ । ६. काशकृत्स्न' ११५ ।
१. काशकृत्स्न के १४० सूत्रों के संग्रह के लिए देखिए-हमारा काशकृत्स्न-व्याकरणम्' नामक संकलन ।