________________
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
अध्याय
पृष्ठ
प्रथम भाग विस्तृत विषय-सूची
विषय १-संस्कृत भाषा की प्रवृत्ति, विकास और हास १
भाषा की प्रवृत्ति, पृष्ठ १ । लौकिक संस्कृतभाषा की प्रवृत्ति २ । लौकिक वैदिक शब्दों का अभेद ४ । संस्कृतभाषा की व्यापकता ८ (व्यापकता के चार उदाहरण ११-१३) । आधुनिक भाषा-मत और संस्कृभाषा १४ । नूतन भाषा-मत की आलोचना १५ । क्या संस्कृत प्राकृत से उत्पन्न हुई ? १८ । संस्कृत नाम का कारण १६ । कल्पित कालविभाग २१ । शाखा-ब्राह्मण-कल्पसूत्र-आयुर्वेद-संहिताएं समानकालिक २१ । संस्कृतभाषा का विकास २४ । संस्कृत भाषा का ह्रास २६ (संस्कृत भाषा में परिवर्तन ह्रास के कारण प्रतीत होता है)। संस्कृत भाषा से शब्द-लोप के २० प्रकार के उदाहरण-(१) प्राचीन यण-व्यवधान सन्धि का लोप २८; (२) 'नयङ्कव' की प्रकृति 'नियङ्कु' का लोप ३०; (३) त्र्यम्बक के साद्धित 'त्र्याम्बक' रूप का लोप ३०; (४) लोहितादि शब्दों के परस्मैपद के रूपों का लोप ३२; (५) अविरविकन्यायप्राविक की अविक' प्रकृति का, तथा 'अविकस्य मांसम्' विग्रह का लोप ३३; (६) 'कानीन' की प्रकृति 'कनीना' का लोप (अवेस्ता में 'कईनीन' का प्रयोग) ३७; (७) 'त्रयाणाम' की मूल प्रकृति 'त्रय' का लोप ३४; (८) षष्ठयन्त का तृजन्त तथा अकान्त के साथ समास का लोप ३५; (8) हन्त्यर्थक' 'वध' धातु का लोप ३६; (१०) 'द्वय' के 'जस्' से अन्यत्र सर्वनामरूपों का लोप ३६; (११) अकारान्त नाम के 'भिस्' प्रत्ययान्त रूपों का लोप ३७; (१२) ऋकारान्तों के 'शस्' के पितरः' आदि रूपों का लोप ३८; (१३) 'अर्वन्तो 'मघवन्तौ' आदि रूपों, दीधी वेवीङ् और इन्धी धातु के प्रयोगों का लोक में लोप ३८, ३९; (१४) समास में नकारान्त राजन् के ('मत्स्यराज्ञा'
आदि) प्रयोगों, विना समास के प्रकारान्त 'राज' के रूपों का लोप (समासान्त प्रत्यय वा आदेश आदि द्वारा मूल प्रकृति की ओर संकेत- यथा :राज' और