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________________ २५२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रातिशाख्यों और श्रौतसूत्रों के अनेक सूत्र पाणिनीय सूत्रों से समानता रखते हैं। बहुत से सूत्र अक्षरशः समान हैं। इस से प्रतीत होता है कि पाणिनि ने अपने पूर्ववर्ती ग्रन्थकारों के अनेक सूत्र अपने ग्रन्थ में संग्रहीत किये हैं । हमारा विचार है कि यद्यपि पाणिनि ने स्वशास्त्र के प्रवचन में सम्पूर्ण प्राचीन व्याकरण वाङमय का उपयोग किया है, पुनरपि उस का प्रधान उपजीव्य आपिशल व्याकरण है।' . प्राचीन सूत्रों के परिज्ञान के कुछ उपाय पाणिनीय तन्त्र में कितने सूत्र वा सूत्रांश प्राचीन व्याकरणों से संगृहीत हैं, इस का कुछ परिज्ञान निम्न कतिपय उपायों से हो १० सकता है १. एक सूत्र अथवा अनेक सूत्र मिलकर अथवा सूत्रांश जो छन्दोरचना के अनुकूल हो । यथा वृद्धिरादैजदेगुणः -अनुष्टुप् का दूसरा चरण । इग्यणः सम्प्रसारणम् -" " " " तङानावात्मनेपदम् - ॥ " " " कृत्तद्धितसमासाश्च- ॥ ॥ प्रथम , २-एक सूत्र में अनेक चकारों का योग । तुलना करो अवर्णो ह्रस्वदीर्घप्लुतत्वाच्च त्रस्वर्योपनयेन च प्रानुनासिक्यभेदाच्च संख्यातोऽष्टावशात्मकः ।" इस पाणिनीय शिक्षासूत्र की प्रापिशल शिक्षा केह्रस्वदीर्घप्लुतत्वाच्च स्वर्योपनयेन च । प्रानुनासिक्यभेदाच्च संख्यातोऽष्टादशात्मकः॥ सूत्र के साथ । पाणिनि ने आपिशलि के श्लोकबद्ध सूत्र में ही 'अवर्ण' पद और जोड़ दिया। इससे वह गद्य बन गया। परन्तु २५ १. देखो पूर्व पृष्ठ १४६, पं०६। २. विशेष द्रष्टव्य 'मञ्जूषा पत्रिका, (कलकत्ता) वर्ष ५, अङ्क ४, पृष्ठ ११७, ११८ । ३. अष्टा० १।१।१,२॥ ४. अष्टा० १११॥४५॥ ५. अष्टा० १४.१००॥ ६. अष्टा० १।२।४६॥ ७. सूत्रात्मक पाणिनीय शिक्षा का लघुपाठ, प्रकरण ६ । .३० ८. आपिशल शिक्षा, प्रकरण ६ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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