________________
संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
पाणिनीय शास्त्र का मुख्य उपजीव्य
५
पाणिनीय अष्टाध्यायी एवं पाणिनीय शिक्षा में जिस प्रकार आठ अध्याय एवं आठ प्रकरण हैं, उसी प्रकार पाणिनि से पूर्व भावी पि शलि के शब्दानुशासन एवं शिक्षा में भी आठ अध्याय और आठ प्रकरण हैं, यह हम पूर्व लिख चुके हैं ।' दोनों प्राचार्यों के दोनों ग्रन्थों में वर्तमान यह समानता यह इङ्गित करती है कि पाणिनीय तन्त्र का मुख्य उपजीव्य आपिशल-तन्त्र है । इतना ही नहीं, पदमञ्जरीकार तो इसे और भी स्पष्टरूप में कहता है
२४२
'कथं पुनरिदमाचार्येण पाणिनिनाऽवगतमेते साधव इति ? आप१० शलेन पूर्वव्याकरणेन । श्रपिशलिना तहि केनावगतम् ? ततः पूर्वव्याकरणेन' ।'
पाणिनिरपि स्वकाले शब्दान् प्रत्यक्षयन्नापिशलादिना पूर्वस्मिन्नपि काले सत्तामनुसन्धत्ते; एवमापिशलिः' ।
पाणिनीय तन्त्र की विशेषता
१५
आचार्य चन्द्रगोमी अपने व्याकरण २२२२६८ की स्वोपज्ञ - वृत्ति में एक उदाहरण देता है -- पाणिनोपज्ञमकालकं व्याकरणम् ।
२५
काशिका, सरस्वतीकण्ठाभरण* श्रोर वामनीय लिङ्गानुशासन की वृत्तियों में 'पाणिन्युपज्ञमकालकं व्याकरणम्' पाठ है।
इन उदाहरणों का भाव यह है कि कालविषयक परिभाषाओं से २० रहित व्याकरण सर्वप्रथम पाणिनि ने ही बनाया। प्राचीन व्याकरणों में भूत भविष्यत् अनद्यतन आदि कालों की विविध परिभाषाएं लिखी
श्रापिशल - शिक्षा पृष्ठ
१. आपिशल व्याकरण का परिमाण, पृष्ठ १५०, २. पदमञ्जरी, 'शब्दानु०' भाग १, पृष्ठ ६ ।
१५७ ॥
३. पदमञ्जरी, 'शब्दानु०' भाग १, पृष्ठ ७ ।
४. काशिका २२४।२१ ॥
५. दण्डनाथ - वृत्ति ३।३।१२६॥
८. पृष्ठ ६, द्वि० सं०
६. कालकमिति कालपरिभाषारहितमित्यर्थः । न्यास ४ । ३ । १५५ ॥ पाणिनिना प्रथमं कालाधिकाररहितं व्याकरणं कर्तुं शक्यमिति परिज्ञातम् । वामनीय लिङ्गानुशासन, पृष्ठ ६, द्वि० सं० ।