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________________ ३१ पाणिनि और उसका शब्दानुशासन २४१ पूज्यपाद ने भी सर्वार्थसिद्धि २।४२ की स्वोपज्ञ वृत्ति में लिखा है-- विशेषणं विशेष्येण इति वृत्तिः । यहां 'विशेषणं विशेष्येण' यह पूज्यपाद के जैनेन्द्र व्याकरण १।३। का ५२ वां सूत्र है। इस आधार पर वृत्तिसूत्र का अर्थ होगा व्याकरणसूत्र । अपर कारण--वृत्ति शब्द का अर्थ पतञ्जलि ने शास्त्रप्रवृत्ति किया है ।' वैयाकरणों में व्याकरणशास्त्रीय सुप् कृत् तिड़ आदि पांच वृत्तियां अथवा प्रवृत्तियां प्रसिद्ध हैं। तदनुसार वृत्तिसूत्र शब्द का अर्थ होगा सुप् प्रादि वृत्तियों शास्त्र-प्रवृत्तियों के बोधक सूत्र। १० पं० गुरुपद हालदार ने 'वृत्तिसूत्र' पद का अर्थ न समझ कर विविध कल्पनाएं की हैं, वे चिन्त्य हैं। मूलशास्त्र--गार्ग्य गोपालयज्वा अपनी तैत्तिरीय प्रातिशाख्य की टीका में पाणिनीय शास्त्र का निर्देश मूलशास्त्र के नाम से करता है। यथा क--मूलशास्त्रे त्ववर्णपूर्वस्यापि कस्यचित् 'रोरि' इति लोपः . स्मयते। ख-तदुक्तं मूलशास्त्रे 'प्रोमभ्यादाने' अचः प्लुत इति ।। गोपालयज्वा का पाणिनीय शास्त्र को मूलशास्त्र कहने में क्या अभिप्राय है, यह हमें ज्ञात नही । हो सकता है वह प्रातिशाख्यों को २० अथवा तैत्तिरीय प्रातिशाख्य को पाणिनीयमूलक समझता हो । यदि उसका यही अभिप्राय हो, तो यह उसकी भ्रान्ति है । ते० प्रा० पाणिनीय शास्त्र से निश्चित ही प्राचीन है। . अष्टिका-पाणिनीयाष्टक का एक नाम अष्टिका भी है। १. महाभाष्य ११, प्रा० १ के अन्त में। २. व्या० द० इतिहास, पृष्ठ ३९४ । ३. ते० प्रा० ८ । १६, मैसूर सं०, पृष्ठ २४ । ४. ते० प्रा० १७ । ६, मैसूर सं०, पृष्ठ ४४७ । ५. अष्टिका पाणिनीयाष्टाध्यायी । बालमनोरमा । भाग, १, पृष्ठ ५१५ (लाहौर संस्क०)। ०३
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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