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संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास
प्राचार्य हेमचन्द्र के काव्यानुशासन और योगानुशासन भी तत्तद् विषयक ग्रन्थों के नाम द्रष्टव्य हैं ।
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वृत्तिसूत्र - पाणिनीय सूत्रपाठ के लिये 'वृत्तिसूत्र' पद का प्रयोग महाभाष्य में दो स्थानों पर उपलब्ध होता है ।' चीनी यात्री इल्सिंग ने भी इस नाम का निर्देश किया है । जयन्तभट्टकृत न्यायमञ्जरी में उद्धृत एक श्लोक में वृत्तिसूत्र का उल्लेख मिलता है । 3 नागेश ने महाभाष्य २।१।१ के प्रदीपविवरण में लिखा है
पाणिनीयसूत्राणां वृत्तिसद्भावाद् वातिकानां तदभावाच्च तयोवैषम्यबोधनादम्
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अर्थात् पाणिनीय सूत्र पर वृत्तियां हैं, वार्तिकों पर नहीं । अतः दोनों में भेद दर्शाने के लिये पाणिनीग सूत्रों के लिये वृत्तिसूत्र पद का प्रयोग किया है ।
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नागेश का 'वातिकानां तदभावात्' हेतु सर्वथा ठीक है । भर्तृहरि महाभाष्यदीपिका में दो स्थानों पर वार्तिक के लिये 'भाष्यसूत्र' पद १५ का व्यवहार किया है । इससे स्पष्ट है कि वार्तिकों पर भाष्य ग्रन्थ ही लिखे गए, वृत्तियां नहीं लिखी गई । पाणिनीय सूत्रों पर वृत्तियां ही लिखी गई, उन पर सीधे भाष्य ग्रन्थों की रचना नहीं हुई ।
अन्य कारण - वृत्तिसूत्र नाम का एक अन्य कारण भी सम्भव है । यास्क ने लिखा है
संशयवत्यो वृत्तयो भवन्ति । २ । १ ॥
यहां वृत्ति से व्याकरणशास्त्रीय कृत् तद्धित वृत्तियाँ अभिप्रेत हैं।
१. महाभाष्य २०१११, पृष्ठ ३७१ २ २ २४, पृष्ठ ४२४ ।
२. इत्सिंग की भारतयात्रा, पृष्ठ २६८ ।
३. वृत्तिसूत्रं तिला माषा: कपत्री कोद्रवौदनम् । श्रजडाय प्रदातव्यं जडी
२५ करणमुत्तमम् ॥ भाग १, पृष्ठ ४१८ । पं० गुरुपद हालदार ने लिखा है
भाष्य के अतिरिक्त 'वृत्तिसूत्र' शब्द का प्रयोग नहीं मिलता ( व्या० द० इ० पृष्ठ ३६४) । यह लेख ठीक नहीं ।
४. महाभाष्यदीपिका हस्तलेख पृष्ठ २८१, २५२ ; पूना सं० पृ० २१३ में दो बार !