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२३८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास वह पाठ सम्प्रति प्राच्य, उदीच्य और दाक्षिणात्य दभे से त्रिधा विभक्त
प्राच्य पाठ-अष्टाध्यायी के जिस पाठ पर काशिका वृत्ति है, वह प्राच्य पाठ है।
औदीच्य पाठ-क्षीरस्वामी आदि कश्मीरदेशीय विद्वानों से आश्रीयमाण सूत्रपाठ पाठ औदीच्य पाठ है।
दाक्षिणात्य पाठ--जिस पाठ पर कात्यायन ने अपने वार्तिक लिखे हैं, वह दाक्षिणात्य पाठ हैं।
वृद्ध लघु पाठ-ये तीन पाठ दो विभागों में विभक्त हैं--वृद्धपाठ १० और लघपाठ । प्राच्यपाठ वृद्धपाठ है, और औदीच्य तथा दाक्षिणात्य
पाठ लघुपाठ हैं । औदीच्य और दाक्षिणात्य पाठों में अवान्तर भेद अति स्वल्प हैं।
धातुपाठ, गणपाठ और उणादिपाठ के उक्त पाठवैविध्य का वर्णन हम ने उन-उन प्रकरणों में यथास्थान आगे किया है। इस के १५ लिए पाठक द्वितीय भाग में तत्तत्प्रकरण देखें।
अन्य शास्त्रों के विविध पाठ-यह पाठवैविध्य अनेक प्राचीन शास्त्रों में उपलब्ध होता है। किसी के वृद्ध लघु दो पाठ हैं, तो किसी के वृद्ध मध्यम और लघु तीन पाठ । यथा--
१--निरुक्त को दुर्ग और स्कन्द की टीकाएं लघुपाठ पर हैं, और २० सायण द्वारा ऋग्भाष्य में उद्धत पाठ वृद्धपाठ है। निरुक्त के दोनों पाठों के द्विविध हस्तलेख अद्ययावत् उपलब्ध होते हैं।
२--मनु और चाणक्य के साथ बहुत्र वृद्ध विशेषण देखा जाता है। प्राचीन ग्रन्थों में उद्धृत वृद्धमनु के अनेक वचन वर्तमान मनु
स्मृति में उपलब्ध नहीं होते । वर्तमान मनुपाठ लघुपाठ हैं। चाणक्य२५ नीति के वृद्ध और लघु पाठ आज भी उपलब्ध हैं।
३-हारिद्रवीय गृह्य के महापाठ का एक वचन कोषीतकि गृह्य की भवत्रात टीका पृष्ठ ६६ पर उद्धृत है।
४-भरत-नाट्यशास्त्र के १८००० श्लोकों का वृद्धपाठ, १२००० श्लोंकों का मध्यपाठ और ६००० श्लोकों का लघुपाठ था । वर्तमान