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________________ २३२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास जायेगा? वररुचि ने अपने ग्रन्थ में निरुक्त १११८ से पूर्व के अनेक पाठ उद्धृत किये हैं।' अतः ऐसे वचनों के आधार पर इस प्रकार के भ्रमपूर्ण सिद्धान्तों की कल्पना करना सर्वथा अयुक्त है । इसलिये पूर्वोक्त प्रमाणों के अनुसार पाणिनीय शास्त्र का प्रारम्भ 'प्रथ शब्दानुशासनम्' से समझना चाहिये, और प्रत्याहार सूत्र भी पाणिनीय ही मानने चाहिये। यही युक्तियुक्त है। ___ इसी प्रकार एक भूल कात्यायनकृत वार्तिकपाठ के सम्बन्ध में भी हुई है। इसका निर्देश हम कात्यायन के प्रकरण में करेंगे । अष्टाध्यायी और प्रापिशल तथा पाणिनीयशिक्षा से तुलना पाणिनोय और आपिशल शिक्षा के प्रकरणविच्छेद के साथ अष्टाध्यायी के अध्यायों की तुलना की जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जैसे दोनों की शिक्षाओं में प्रथम स्थान प्रकरण से पूर्व पठित सूत्र उसके उपोद्धात रूप हैं, और आठ प्रकरणों से बहिर्भूत होते हुए १५ भी शिक्षा के अङ्ग हैं, उसी प्रकार अष्टाध्यायी के प्रथमाध्याय का प्रारम्भ 'वृद्धिरादैच' से होने पर भी 'अथ शब्दानुशासनम' और प्रत्याहारसूत्र अध्यायविच्छेद से बहिर्भूत होते हुए भी अष्टाध्यायी के अङ्ग और पाणिनि द्वारा ही प्रोक्त हैं। अष्टाध्यायी के पाठान्तर पहले हमारा विचार था कि पाणिनि के लिखे ग्रन्थों में ही पाठान्तर अधिक हुए हैं, अष्टाध्यायी का पाठ प्रायः सुरक्षित रहा है। परन्तु शतशः ग्रन्थों का पारायण करने पर विदित हुआ कि सूत्रपाठ में भी पर्याप्त पाठान्तर हो चुके हैं। हां इतना ठीक है कि अन्य ग्रन्थों की अपेक्षा इस में पाठान्तर स्वल्प हैं। हमने व्याकरण के सब २५ मद्रित ग्रन्थों और अन्य विषय के विविध ग्रन्थों का पारायण करके सूत्रपाठ के लगभग दो सौ पाठान्तर संगृहीत किये हैं।' १. निरुक्तसमुच्चय (हमारा द्वि० तृ० संस्करण) पृष्ठ २,३,४ इत्यादि । २. धातुपाठ, गणपाठ, उणादिसूत्र और लिङ्गानुशासन ये अष्टाध्यायी के खिल अर्थात् परिशिष्ट माने जाते हैं । देखो काशिका ११३॥२॥ ३० ३. रामलाल कपूर ट्रस्ट से 'पाणिनीय शब्दानुशासनम् (प्रथम भाग) में
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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