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________________ पाणिनि और उसका शब्दानुशासन २३१ तीन मङ्गलों की ओर संकेत किया है, और 'भूवादयो धातवः' सूत्र के वकारागम को शास्त्र का मध्य मङ्गल कहा है। काशिकाकार 'नोदात्तस्वरितोदयम्" इत्यादि सूत्र की व्याख्या में लिखता है उदात्तपरस्येति वक्तव्ये उदयग्रहणं मङ्गलार्शम् । यह शास्त्र के अन्त का मङ्गल है। इन उद्धरणों में प्रयुक्त आदि मध्य और अन्त शब्दों पर ध्यान देने से विदित होगा कि मध्य और अन्त शब्द यहां अपने मुख्यार्थ में प्रयुक्त नहीं हुए हैं, यह विस्पष्ट है । क्योंकि 'भूवादयो धातवः' शास्त्र के ठीक मध्य में नहीं है। इसी प्रकार 'नोदात्तस्वरितोदयम्' सूत्र भी १० सर्वान्त में नहीं है, अन्यथा शास्त्र के अन्तिम सूत्र 'प" को अपाणिनीय मानना होगा। महाभाष्यकार ने 'अइउण सूत्र पर 'प अ' को पाणिनीय माना है। अतः महाभाष्य के उपर्युक्त उद्धरणों में आदि, मध्य और अन्त शब्द सामीप्यादि सम्बन्ध द्वारा लक्षणार्थ में प्रयुक्त हुए हैं, यह स्पष्ट है। आदि और अन्त शब्द का इस प्रकार लाक्षणिक प्रयोग प्राचीन ग्रन्थों में प्रायः उपलब्ध होता है। नैरुक्तसम्प्रदाय का प्रामाणिक आचार्य वररुचि अपने निरुक्तसमुच्चय के प्रारम्भ में लिखता है मन्त्रार्थज्ञानस्य शास्त्रादौ प्रयोजनमुक्तम्-योऽर्थज्ञ इत्सकलं भद्रमश्नुते नाकमेति ज्ञानविधूतपाप्मा इति । शास्त्रान्ते च-यां यां देवतां निराह तस्यास्तस्यास्ताद्भाव्यमनुभवतीति । इन दोनों उद्धरणों में क्रमश: निरुक्त १८ और १३।१३ के पाठ को निरुक्त के आदि और अन्त का पाठ लिखा है। क्या इससे आचार्य वररुचि के मत में निरुक्त का प्रारम्भ 'योऽर्थज्ञ' से माना २५ १. अष्टा० ८।४। ६७ ॥ २. अष्टा० ८।४।६८॥ ___३. प्रत्याहारसूत्र १ । ४. यदयम् 'अ अ' इत्यकारस्य विवृतस्य संवृतताप्रत्यापत्ति शास्ति । ५. निरुक्तसमुच्चय (हमारा द्वि. तृ० संस्करण) पृष्ठ १ । ६. निरुक्तसमुच्चय (हमारा द्वि० तृ० संस्करण) पृष्ठ २। २०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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