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________________ २३० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ४. सं० ११०० के लगभग होने वाला आश्चर्यमञ्जरी का कर्ता कुलशेखरवर्मा प्रत्याहारसूत्रों को पाणिनिविरचित मानता है- . पाणिनिप्रत्याहार इव महाप्राणझषाश्लिष्टो झषालंकृतश्च(समुद्रः)। ५-६. पुरुषोत्तमदेव, सृष्टिधराचार्य, मेधातिथि, न्यासकार और जयादित्य के मत में 'अथ शब्दानुशासनम्' सूत्र पाणिनीय है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। अतः उन के मत में प्रत्याहारसूत्र भो पाणिनीय हैं, यह स्वयंसिद्ध है। १०. अष्टाध्यायी के अनेक प्राचीन हस्तलेखों में 'हल" सूत्र के १० अनन्तर 'इति प्रत्याहारसूत्राणि' इतना ही निर्देश मिलता है । इन उपर्युक्त प्रमाणों से सिद्ध है कि प्रत्याहारसूत्र पाणिनोय हैं । भ्रान्ति का कारण--इस भ्रम का कारण अत्यन्त साधारण है। महाभाष्यकार ने 'वृद्धिरादेच्" सूत्र पर लिखा है-माङ्गलिक प्राचार्यो महतः शास्त्रौघस्य मङ्गलाथं वृद्धिशब्दमादितः प्रयुङ्क्ते । १५ अर्थात्-प्राचार्य पाणिनि मङ्गल के लिये शास्त्र के प्रारम्भ में वृद्धि शब्द का प्रयोग करता है। ___ महाभाष्य की इस पंक्ति में 'आदि' पद को देख कर अर्वाचीन वैयाकरणों को भ्रम हुआ है कि पाणिनीय शास्त्र का प्रारम्भ 'वृद्धिरादैच्' से होता है, अर्थात उससे पूर्व के सूत्र पाणिनीय नहीं हैं । इस पर विचार करने के पूर्व आदि मध्य और अन्त शब्दों के व्यवहार पर ध्यान देना आवश्यक है । महाभाष्यकार ने 'भूवादयो धातवः'६ सूत्र पर लिखा है माङ्गलिक प्राचार्यो महत: शास्त्रौघस्य मङ्गलार्थ वकारागमं प्रयुङ्क्ते । मङ्गलादीनि मङ्गलमध्यानि मङ्गलान्तानि शास्त्राणि २५ प्रथन्ते। इस पङक्ति में पाणिनीय शास्त्रान्तर्गत प्रादि मध्य और अन्त के १. सं० सा० का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ४०१ । २. अमरटीकासर्वस्व भाग १, पृष्ठ १८६ पर उद्धृत। ३. पूर्व पृष्ठ २२७, २२८ । ४. प्रत्याहारसूत्र १४ । ५. अष्टा० १।१।१॥ ६. अष्टा० १।३।१॥ ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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