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पाणिनि और उसका शब्दानुशासन
क्या प्रत्याहारसूत्र अपाणिनीय हैं ? भट्टोजि दीक्षित प्रभृति पाणिनीय वैयाकरणों का मत है कि प्रत्याहारसूत्र महेश्वरविरचित हैं,' अर्थात् अपाणिनीय हैं । यह मत सर्वथा अयुक्त है। इनको अपाणिनीय मानने में नन्दिकेश्वरकृत काशिका के अतिरिक्त कोई प्राचीन सुदृढ़ प्रमाण नहीं है। प्रत्याहार- ५ सूत्र पाणिनीय हैं, इस विषय में अनेक प्रमाण हैं। वर्तमान समय में सब से प्रथम स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इस ओर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया है । उन्होंने अष्टाध्यायीभाष्य में महाभाष्य का निम्न प्रमाण उपस्थित किया है
१. हयवरट् सूत्र पर महाभाष्यकार ने लिखा है___ एषा ह्याचार्यस्य शैली लक्ष्यते--यत्तुल्यजातीयांस्तुल्यजातीयेषूपदिशति-प्रचोऽक्षु हलो हल्षु।। ___महाभाष्य में प्राचार्य पद का व्यवहार केवल पाणिनि और कात्यायन दो के लिये हुआ है। यहां प्राचार्य पद का निर्देश कात्यायन के लिये नहीं है, अतः प्रत्याहारसूत्रों का रचयिता पाणिनि ही है। १५
२. वृद्धिरादैच् सूत्र के महाभाष्य में वृद्धि और प्रादैच् पद का साधुत्व प्रतिपादन करते हुए पतञ्जलि ने लिखा है___ कृतमनयोः साधुत्वम्, कथम् ? वृधिरस्मा अविशेषेणोपदिष्टः प्रकृतिपाठे, तस्मात् क्तिन् प्रत्ययः । प्रादैचोऽप्यक्षरसमाम्नाय उपदिष्टाः ।
इस वाक्य में 'कृतम्' तथा 'उपदिष्ट:' दोनों क्रियाओं का प्रयोग बता रहा है कि वृध धातु क्तिन् प्रत्यय और प्रादैच् प्रत्याहार इन सब का उपदेश करने वाला एक ही व्यक्ति है। . ३. संवत् ६८७ के लगभग होने वाला स्कन्दस्वामी निरुक्त ११ की टीका में प्रत्याहारसूत्रों को पाणिनीय लिखता है
२५ नापि 'अइउण्' इति पाणिनीयप्रत्याहारसमाम्नायवत् ......
२. इति माहेश्वराणि सूत्राण्यणादिसंज्ञार्थकानि । सिद्धान्तकौमुदी के प्रारम्भ में।
२. भाग १, पृष्ठ ११ (प्रथम सं०) । ३. प्रत्याहारसूत्र ५।
४. अष्टा० १।१।१॥ ५. निरुक्त टीका भाग १, पृष्ठ ८।