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पाणिनि और उसका शब्दानुशासन
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समाप्त हो जाना चाहिए। क्योंकि जब उन उन नाम वाले क्षत्रियों का उन उन प्रदेशों से सबन्ध ही न रहा, तब तत्संबन्धनिमित्तक शब्दों का प्रयोग भी न होना चाहिए । परन्तु उन उन नाम वाले क्षत्रियों के नाश हो जाने पर भी तत्तत प्रदेशों के लिए पञ्चाल आदि शब्दों का प्रयोग लोक में होता है। अतः इन देशवाची शब्दों को तत्तत् ५ नाश वाले क्षत्रियों के निवास का कारण नहीं मानना चाहिए। अपितु इन्हें रूढ संज्ञा शब्द स्वीकार करना चाहिए। __ भारतीय इतिहास एवं प्राचीन व्याकरण ग्रन्थ जिन की ओर पाणिनि का संकेत है। इस बात के प्रमाण हैं कि पञ्चाला: अङ्गाः वङ्गाः आदि देश नाम तत्तत् क्षत्रिय वंशों के निवास के कारण ही १० प्रसिद्ध हुए थे। . ___ अब हमें पाणिनीय उक्ति के आधार पर यह देखना होगा कि भारत के प्राचीन इतिहास में ऐसा काल कब कब आया, जब क्षत्रियों का बाहुल्येन उन्मूलन हुआ । इतिहास के अवलोकन से स्पष्ट है कि क्षत्रियों का इस प्रकार का उन्मूलन तीन बार हुआ। प्रथम बार १५ दाशरथि राम से पूर्व जामदग्य परशुराम द्वारा, द्वितीय वार सर्वक्षत्रान्तकृत् भारत-युद्ध' द्वारा और तृतीय वार सर्वक्षत्रान्तकृत् नन्द' द्वारा। - इन में से प्रथम वार की स्थिति की ओर पाणिनि का संकेत नहीं हो सकता, क्योंकि पाणिनि निश्चय ही भारत युद्ध काल २० का उत्तरवर्ती है। तृतीय वार सर्व क्षत्रों का विनाश नन्द ने किया था, यह उस के सर्वक्षत्रान्तकृत विशेषण से ही स्पष्ट है। डा. वासुदेवशरण अग्रवाल इसी नन्द काल में पाणिनि को मानते हैं । अब विचारना चाहिए कि यदि पाणिनि के काल में ही नन्द ने पञ्चालादि क्षत्रियों का उन्मूलन किया हो तो पाणिनि उसी काल में उक्त सूत्र २५ की रचना नहीं कर सकता, क्योंकि क्षत्रविनाश के समकाल ही तस्य निवासः आदि संबन्ध ज्ञान का प्रभाव नहीं हो सकता। उस सम्बन्धज्ञान के अभाव के लिए न्यूनातिन्यून दो तीन सौ वर्ष का काल
१. कृष्ण द्वैपायन व्यास ने भारत-युद्ध के लिये 'सर्वक्षत्रान्तकृत्' शब्द का का प्रयोग किया है ।
२. नन्द को भी इतिहास में सर्वक्षान्तकृत माना गया है।