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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
आप जुलाई सन् १९५८ से निरन्तर १० वर्ष तक २५ रु० मासिक की सात्त्विक सहायता करते रहे हैं । इस निष्काम सहयोग के लिए मैं आपका अत्यन्त आभारी हूं।
६-श्री पं० भगवद्दसजी दयानन्द अनुसन्धान प्राश्रम, २८।१ पजाबी बाग, देहली।
मेरे प्रत्येक शोध-कार्य में आपका भारी सहयोग सदा से ही रहता आया। आपके सहयोग के विना इस कण्टकाकीर्ण मार्ग में एक पद चलना भी मेरे लिए कठिन था। इतना ही नहीं, इस भाग के प्रथम संस्करण के प्रकाशन की भी व्यवस्था आपने उस काल में की थी, जब देश-विभाजन के कारण आपकी सम्पूर्ण सम्पत्ति लाहौर में छूट गई थी, और देहली में आकर आप स्वयं महती कठिनाई में थे।
द्वितीय संस्करण में जो वृद्धि हुई है, उसमें अधिकांश भाग आप के निर्देशों के अनुसार ही परिबृहित किए गए थे। लगभग साढ़े चार वर्ष पूर्व प्रापका स्वर्गवास हो जाने से इस भाग में उनके द्वारा मुझे कोई सहयोग प्राप्त न हो सका, इसका मुझे अत्यन्त खेद है। उनके उत्तराधिकारियों में पारस्परिक कलह के कारण उनकी प्रति के प्रान्तभागों में लिखे गये निर्देश भी मुझे देखने को प्राप्त न हो सके। अन्यथा उनके निर्देशों से इस संस्करण में भी पर्याप्त लाभ उठा सकता था।
रामलाल कपूर ट्रस्ट ] वैशाखी पर्व [ विदुषां वशंवदः बहालगढ़ (सोनीपत-हरयाणा; ) सं० २०३० ( युधिष्ठिर मीमांसक