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________________ तृतीय संस्करण की भूमिका १६ होने के कारण पाठ्यक्रम के निर्धारकों को अपनाना ही पड़ा। यह भी इस ग्रन्थ की उपादेयता का परिचायक है। विविध प्रकार को सूचियां इस प्रकार के शोधग्रन्थों में विविध प्रकार की सूचियों का होना अत्यावश्यक होता है, जिससे अभिप्रेत विषय शीघ्रता से ढंढा जा सके। परन्तु इस ग्रन्थों के दोनों भागों के पिछले संस्करणों में इस प्रकार की सूचियां हम नहीं दे सके । इसकी न्यूनता हमें स्वयं बहुत अखरती थी। इस कमी को हम इस संस्करण में दूर कर रहे हैं। तीनों भागों से सम्बन्ध ग्रन्थ और ग्रन्थकार के नामों को सूचियां तथा इस ग्रन्थ से साक्षात् वा परम्परा से सम्बन्ध कतिपय विषयों का निर्देश तृतीय भाग के अन्त में कर रहे हैं। इस कार्य से इस ग्रन्थ की उपयोगिता और बढ़ जायेगी, ऐसा हमारा विश्वास है। कृतज्ञता-प्रकाशन इस ग्रन्थ के पुनः संस्करण और प्रकाशन में जिन-जिन महानुभावों ने सहयोग प्रदान किया है, मैं उन सब का बहुत आभारी हूं। . तथापि १-श्री पं० रामशङ्कर भट्टाचार्य, व्याकरणाचार्य एम० ए०, पीएच० डी०, काशी। २-श्री पं० रामअवध पाण्डेय, व्याकरणाचार्य, एम० ए० पीएच० डी०, गोरखपुर। ३-श्री पं० बी० एच० पद्मनाभ राव, प्रात्मकूर (आन्ध्र)। ४-श्री पं० यन्० सी० यस्० वेङ्कटाचार्य 'शतावधानी', सिकन्दराबाद (आन्ध्र)। इन चारों महानुभावों ने इस ग्रन्थ के पूर्व संस्करणों के मुद्रण के पश्चात् अनेकविध अत्यावश्यक सूचनाएं दीं, उनसे इस ग्रन्थ के पुनः संस्करण में पर्याप्त सहायता मिली है । इस कार्य के लिए मैं इन चारों महानुभावों का विशेष आभारी हूं। ५-श्री डा. बहादुरचन्दजी छाबड़ा, एम० ए०, एम० ओ० एल०, पीएच० डी०, डी० एम० ए० एस०, भूतपूर्व संयुक्त प्रधान निर्देशक, भारतीय पुरातत्त्व विभाग, देहली।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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