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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास गत २३ वर्षों में अनेक लेखकों ने मेरे इस ग्रन्थ से प्रत्यक्ष वा परोक्षरूप में बहुविध सहायता ली है। अनेक उदारमना लेखकों ने 'उदारतापूर्वक' मेरे ग्रन्थ वा मेरे नाम का उल्लेख किया है। अनेक ऐसे महानुभाव भी हैं, जिन्होंने मेरे ग्रन्थ से न केवल साहाय्य लिया, अपितु पूरे-प्रकरण को अपने शब्दों में ढालकर अपने लेखों ग्रन्थों वा शोध-प्रबन्धों के विशिष्ट प्रकरण लिखे, परन्तु कहीं पर भी मेरे ग्रन्थ वा मेरे नाम का उल्लेख करना उन्होंने उचित नहीं समझा। सम्भव है इसमें उन्होंने अपनी शोध-प्रतिष्ठा की हानि समझी हो । कुछ भी हो इस ग्रन्थ के प्रकाशित होने के पश्चात इस से विविध लेखकों को बहुविध साहाय्य प्राप्त हुआ, इतने से ही मैं अपने परिश्रम को सफल समझता हूं। श्री डा. सत्यकाम वर्मा का ग्रन्थ-मेरे ग्रन्थ के प्रकाशन के पश्चात् इस विषय का एक ही ग्रन्थ गत वर्ष प्रकाशित हुआ है। वह है-श्री डा० सत्यकाम वर्मा का 'संस्कृत व्याकरण का उद्भव और विकास' । यह ग्रन्थ विश्वविद्यालयीय छात्रों की दृष्टि से ही लिखा गया है । अतः इसमें मौलिक चिन्तन की आशा करना भी व्यर्थ है। आपने यह ग्रन्थ योरोपीय दृष्टि को प्रधानता देते हुए लिखा है। प्रसङ्गवश उन्हें मेरे ग्रन्थ को भी उदधृत करना पड़ा । परन्तु आश्चर्य इस बात का है कि श्री वर्मा जी ने अनेक स्थानों पर मेरे नाम से जो मत उद्धृत किये हैं, वे मेरे ग्रन्थ में उस रूप में कहीं लिखे ही नहीं गये। इस प्रकार के दो तीन स्थलों की समीक्षा मैंने इस संस्करण में निदर्शनार्थ की है। पाठक दोनों के ग्रन्थों को मिलाकर पढ़ें, और देखें कि किस प्रकार अपना वैदुष्य दिखाने के लिये किसी लेखक के नाम से असत्य मत उपस्थित करके उनकी समीक्षा करने का रोग हमारे डाक्टर जैसी सम्मानित उपाधिधारियों में विद्यमान है। विविध परीक्षाओं में ग्रन्थ की स्वीकृति-आगरा, पजाब आदि अनेक विश्वविद्यालयों में व्याकरणविषयक एम० ए०, तथा वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय की प्राचार्य परीक्षा के पाठ्यक्रम में साक्षात् वा सहायक ग्रन्थ के रूप में मेरे ग्रन्थ को स्थान दिया गया है । यद्यपि यह ग्रन्थ भारतीय ऐतिहासिक दृष्टि से लिखा होने के कारण पाश्यात्त्य-मतानुयायी अधिकारियों द्वारा उक्त परीक्षानों में स्थान पाने के योग्य नहीं हैं, परन्तु अपने विषय का एकमात्र ग्रन्थ ..
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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