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________________ २१२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास साक्ष्यों को उद्धृत करते हैं, जिनका निर्देश आज तक किसी भी व्यक्ति ने नहीं किया । यथा २. यह सर्ववादी सम्मत है कि तथागत बुद्ध के काल में संस्कृत भाषा जनसाधारण की भाषा नहीं थी उस समय जनसाधारण में पालि और प्राकृत भाषाएं ही व्यवहृत होती थीं। इसलिए तथागत बुद्ध और महावीर स्वामी ने अपने मतों के प्रचार के लिए संस्कृत के स्थान में पालि और प्राकृत भाषाओं का आश्रय लिया। इसके विपरीत पाणिनीय अष्टाध्यायी में शतशः ऐसे प्रयोगों के साधुत्व का उल्लेख मिलता है, जो नितान्त ग्राम्य जनता के व्यवहारोपयोगी हैं। १० यथा - क-शाक बेचने वाले कूजड़ों द्वारा विक्रय के लिए मूली, पालक, मेथो, धनिया, पोदीना आदि-आदि की बांधी मुट्ठी अथवा गड्डी के लिए प्रयुक्त होने वाले मूलकपणः, शाकपणः आदि शब्दों के साधुत्व बोधन के लिए एक सूत्र है१५ नित्यं पणः परिमाणे । ३ । ३ । ६६॥ __ इस सूत्र से बोधित शब्द विशुद्ध दैनन्दिन के व्यवहारोपयोगी हैं, साहित्य में प्रयुक्त होने वाले शब्द नहीं हैं । ___ ख-वस्त्र रंगने वाले रंगरेजों के व्यवहार में आने वाले माञ्जि ष्ठम्, काषायम्, लाक्षिकम् आदि शब्दों से साधुत्व ज्ञापन के लिए २० पाणिनि ने निम्न सूत्र पढ़े हैं तेन रक्तं रागात् । लाक्षारोचनाट्ठक् । ४ । २ । १, २ ॥ ग--पाचकों के (जो कि पुराकाल में शूद्र ही होते थे') व्यवहार में आने वाले दाधिकम्, प्रौदश्वित्कम्, लवणः सूपः आदि प्रयोगों के लिए पाणिनि ने ४।२।१६-२० तथा ४।४।२२-२६ दस सूत्रों का २५ विधान किया है। __घ--कृषकों के व्यवहारोपयोगी विभिन्न प्रकार के धान्योपयोगी क्षेत्रों के वाचक प्रेयङ्गवीनम्, बहेयम्, यव्यम्, तिल्यम्, तैलीनम् आदि प्रयोगों के लिए ५।२।१-४ चार सूत्रों का प्रवचन किया है। १. प्रार्याधिष्ठिता वा शूद्राः संस्कर्तारः स्युः । आप० धर्म० २२२॥३॥४॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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