________________
पाणिनि और उसका शब्दानुशासन
२११
अब शेष रह जाता है महाराज उदयी के द्वारा पाटलिपुत्र का बसाना । इस के विषय में हम पतञ्जलि के प्रकरण में विस्तार से लिखेंगे। ___ डाक्टर वासुदेवशरण अग्रवाल ने पाणिनि कालीन भारतवर्ष में गोल्डस्टकर आदि के मतों का प्रत्याख्यान करके पाणिनि का समय ५ नन्द के काल में ईसा पूर्व ४ थी शती माना है। अब हम उसकी विवेचना करते हैं
१. पहले हम उस प्रमाण को लेते हैं जिस का निर्देश स्वमत से विरुद्ध होने के कारण पाश्चात्त्य विद्वानों और उनके अनुयायियों ने जान बूझ कर उपस्थित नहीं किया। वह है पाणिनि द्वारा निर्वाणो- १० ऽवाते (८।२।५०) सूत्र में निर्दिष्ट निर्वाण पद । वैयाकरण इस सूत्र का उदाहरण देते हैंनिर्वाणोऽग्निः, निर्वाणः प्रदीपः, निर्वाणो भिक्षुः। इन में निर्वाण पद का अर्थ है-'शान्त होना' बुझ जाना, मर जाना ।
पाश्चात्त्य मतानुसार यदि पाणिनि तथागत बुद्ध से उत्तरकालीन होता तो बौद्ध साहित्य में निर्वाण शब्द का जो प्रसिद्ध मोक्ष अर्थ है, उस का वह उल्लेख अवश्य करता। जो पाणिनि मंखलि गोसाल व्यक्ति विशेष के लिए प्रयुक्त 'मस्करी' शब्द का उल्लेख कर सकता है (पाश्चात्त्यमतानुसार), वह बौद्ध साहित्य में प्रसिद्धतम निर्वाण पद २० के अर्थ का निर्देश न करे, यह कथमपि सम्भव नहीं । इसलिए पाणिनि द्वारा बौद्ध साहित्य में प्रसिद्ध निर्वाण पद के अर्थ का उल्लेख न होने से पाश्चात्त्यसरणि-अनुसार ही यह सिद्ध है कि पाणिनि तथागत बुद्ध से पूर्ववर्ती है। ___ कालविवेचन में बाह्यसाक्ष्य का अपना स्थान होता ही है तथापि २५ अन्तःसाक्ष्य का महत्त्व सर्वोपरि होता है और वह महत्त्व उस अवस्था में और भी बढ़ जाता है जब बाह्यसाक्ष्य और अन्तःसाक्ष्य में विरोध हो । अन्तरङ्ग बलीयो भवति यह न्याय प्रसिद्ध ही है। अतः हम पाणिनि के काल निर्णय के लिये अतःसाक्ष्य उपस्थित करते हैं । अन्त साक्ष्य
३० अब पाणिनि के काल-विवेचन के लिए अष्टाध्यायी के उन अन्तः