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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
६-'यवनानी' शब्द पर लिखते हुए डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने भी स्पष्ट लिखा है कि भारतीय सिकन्दर के आक्रमण से पूर्व भी यवन जाति से परिचित थे।'
यवन जाति के विषय में हम इतना और कहना चाहते हैं कि ५ यवन जाति मूलतः अभारतीय नहीं है। यवन महाराज ययाति के पुत्र के वंशज हैं । महाभारत में स्पष्ट लिखा है
यदोस्तु यादवा जातास्तुर्वसोस्तु यवनाः स्मृताः ।'
यह तुर्वसु की सन्तति बृहत्तर भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर निवास करती थी। ब्राह्मणों के प्रदर्शन और धर्मक्रिया के लोप के १० कारण ये लोग म्लेच्छ बन गए। ये लोग यहीं से प्रवास करके
पश्चिम में गए और इन्हीं के यवन नाम पर उस देश का नाम भी यवन यूनान पड़ा।
इस ऐतिहासिक तथ्य को स्वीकार न करके किसी भी प्राचीन गन्थ में यवन शब्द के प्रयोग मात्र से उसे सिकन्दर के आक्रमण से १५ पीछे का बना हुअा कहना दुराग्रह मात्र है
७–अब शेष रहती है राजशेखर द्वारा उधत अनुश्रुति । अनुश्रुति इतिहास में तभी तक प्रमाण मानी जाती है.जब तक उसका प्रत्यक्ष बलवत प्रमाण से विरोध न हो। विरोध होने पर अनुश्रति अनुश्रति
मात्र रह जाती है। इस के साथ ही यह भी ध्यान रहे कि राजशेखर २० अति-अर्वाचीन ग्रन्थकार है। उस काल तक पहुंचते-पहुंचते अनुश्र ति
का रूप ही परिवर्तित हो गया। उस के लेखानुसार तो पतञ्जलि भी पाणिनि का समकालिक बन जाता है। अतः राजशेखर की अनुश्र ति अप्रमाण है।
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१. पाणिनि कालीन भारतवर्ष, पृष्ठ ४७५-४७६ ।। २. आदि पर्व १३६॥२॥; कुम्भघोण संस्क० ।
३. मनु १०।४२,४४॥ इन्हीं यवनों के एक आततायी राजा 'कालयवन' का वध श्रीकृष्ण ने किया था। इस के विषय में अल्बेरूनी लिखता है'हिन्दुओं में कालयवन नाम का एक संवत् प्रचलित है।... “वे इसका प्रारम्भ गत द्वापर के अन्त में मानते हैं । इस यवन ने इनके धर्म और देश पर बड़े
४. पूर्व पृष्ठ २०७ टि० १ देखिए।
३० अत्याचार किये थे।