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पाणिनि और उसका शब्दानुशासन
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७-- राजशेखर ने काव्यमीमांसा में जिस अनुश्रुति का उल्लेख किया है उसके अनुसार पाटलिपुत्र में होने वाली शास्त्रकार- परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वर्ष, उपवर्ष पाणिनि, पिङ्गल और व्याडि ने यशो - लाभ प्राप्त किया था।' पाटलिपुत्र की स्थापना महाराज उदयो ने कुसुमपुर के नाम से की थी।
ये हैं संक्षेप से कतिपय मुख्य हेतु,' जिन के आधार पर पाणिनि का काल ४ थी शती ईसा पूर्व तक खींच कर स्थापित किया जाता है ।
अब हम संक्षेप से इन हेतुओं की परीक्षा करते हैं-
१ - - बोद्ध ग्रन्थों के अध्ययन से यह विस्पष्ट प्रतीत होता है कि १० उस समय व्यक्तिगत विशिष्ट नामों के स्थान पर प्रायः गोत्र नामों का व्यवहार करने का परिचलन था । हम पूर्व (पृष्ठ २०४ ) लिख चुके हैं कि पाणिनि भी एक गोत्र है । अतः मञ्जु श्रीमूलकल्प में किसी पाणिनि नाम वाले माणव का महापद्म के सखा रूप में उल्लेख मात्र से विना विशिष्ट विशेषण के यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है १५ कि यह पाणिनि शास्त्रकार पाणिनि ही है ।
प्राचीन परिपाटी को विना जाने ऐसी ऊटपटांग कल्पनात्रों के आधार पर अनेक व्यक्ति बौद्ध ग्रन्थों में गोत्र नाम से अभिहित आश्वलायन आदिकों को ही वैदिक वाङ् मय के विविध ग्रन्थों के रचयिता कहने का दुस्साहस करते हैं । इसके विपरीत बौद्ध ग्रन्थों में २० अनेक स्थानों पर तदागत बुद्ध के साथ धर्मचर्चा करने वाले वेदवेदाङ्ग पारग विद्वानों का जो वर्णन उपलब्ध होता है उससे तो वेदाङ्गों की सत्ता तथागत बुद्ध के काल से बहुत पूर्व स्थिर होती है ।
२ -- कथासरित्सागर के रचयिता को भी बौद्धकालिक गोत्र नाम व्यवहार के कारण भ्रान्ति हुई है और इसीलिए उसने पाणिनि और २५
१. श्रूयते च पाटिलपुत्रे शास्त्रकार परीक्षा - 'प्रत्रोपवर्षवर्षाविह पाणिनिपिङ्गलाविह व्याडि: । वररुचिपतञ्जलि इह परीक्षिताः ख्यातिमुपजग्मुः । अ० १०, पृष्ठ ५५ ॥
२. वायुपुराण ६६ । ३१८ || विशेष पतञ्जलि के प्रकरण में देखें ।
३. पाश्चात्य मत में दिए जाने वाले हेतुनों के लिए डा० वासुदेवशरण
अग्रवाल का 'पाणिनि कालीन भारतवर्ष' अध्याय ८ देखें ।
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