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सस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
पाश्चात्त्य मत, जिसकी मूल भित्ति सिकन्दर' और चन्द्रगुप्त मौर्य को काल्पनिक समकालीन मानना है, जो अपरीक्षितकारक के समान प्रांख मद कर मानने वाले अंग्रेजी पढ़े अनेक भारतीय भी स्वीकार करते हैं। पाणिनि के काल निर्णय के लिए पाश्चात्त्य और उन के भारतीय अनुयायी जिन प्रमाणों का उल्लेख करते हैं, उनमें निम्न प्रमाण मुख्य हैं
१-आर्यमञ्जुश्रीमूलकल्प में लिखा है-महापद्म नन्द का मित्र एक पाणिनि नाम का माणव था।'
' २–कथासरित्सागर में पाणिनि को महाराज नन्द का सम१० कालिक कहा है।
३-बौद्ध भिक्षों के लिए प्रयुक्त होने वाले श्रमण शब्द का निर्देश पाणिनि के कुमारः श्रमणादिभिः (२। १ । ७०) सूत्र में मिलता है--
___४-बुद्धकालिक मंखलि गोसाल नाम के प्राचार्य के लिए प्रयुक्त १५ संस्कृत मस्करी शब्द का साधुत्व पाणिनि ने मस्करमस्करिणौ वेणपरिवाजकयोः (६।१।१५४) सूत्र में दर्शाया है।
५–सिकन्दर के साथ युद्ध में जूझने वाली और उसे पराजित कर के वापस लौटने को बाध्य करने वाली क्षुद्रक मालवों की सेना का
उल्लेख पाणिनि ने खण्डिकादि गण (४।२।४५) में पठित क्षद्रकमाल२० वात् सेनासंज्ञायाम् गणसूत्र में किया है, ऐसा बैवर का मत है ।
६-अष्टाध्यायी ४ । १।४६ में यवन शब्द पठित है । उसके आधार पर कीथ लिखता है कि पाणिनि सिकन्दर के भारत आक्रमण के पोछे हुआ।
१. सिकन्दर का आक्रमण चन्द्रगुप्त मौर्य के समय नहीं हुआ। इन दोनों की समकालीनता भ्रममूलक है। मैगस्थनीज के अवशिष्ट इतिवृत्त से भी इन २५
की समकालीनता कथञ्चित भी सिद्ध नहीं होती, अपितु इसका विरोध विस्पष्ट है । इस तथ्य के परिज्ञानार्थ देखिए पं० भगवद्दत्तजी कृत 'भारतवर्ष का बृहद इतिहास' भाग १, पृष्ठ २८८-२९८, द्वि० सं० ।
२. तस्याप्यन्यतमः सख्यः पाणिनि म माणवः । ३० ३. कथा० लम्बक १, तरङ्ग ४ ।