SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाणिनि और उसका शब्दानुशासन २०५ पैङ्गली कल्प--यह कल्प शाकटायन व्याकरण ३।१।१७५ की अमोघा और चिन्तामणि वृति में स्मृत है। पङ्गालायन गोत्र--बौधायन श्रोत प्रवराध्याय ३ में पैङ्गलायन गोत्र का भी निर्देश उपलब्ध होता है। यह गोत्र पाणिनि-अनुज पिङ्गल के पुत्र से प्रारम्भ हुआ अथवा किसी प्राचीन पैङ्गलायन से, ५ यह विचारणीय है। पैङ्गलायनि-ब्राह्मण-बोधायन श्रीत २१७ में पैङ्गलायनि ब्राह्मण का पाठ उद्धृत है । वह किसी प्राचीन पैङ्गलायन प्रोक्त है। इस में णिनि प्रत्यय होकर पैङ्गलायनि-ब्राह्मण प्रयोग निष्पन्न हुआ है । पुराण-प्रोक्त पैङ्गलीकल्प का हम ऊपर निर्देश कर चुके है । १० पाणिनि-अनुज पिङ्गल के पौत्र तक ब्राह्मण ग्रन्थों का प्रवचन होता रहा, इस में कोई प्रमाण नहीं है। जहां तक व्यास के शिष्यों प्रशिष्यों द्वारा वेद की अन्तिम शाखाओं और ब्राह्मण ग्रन्थों के प्रवचन का प्रश्न है, वह अधिक से अधिक भारत युद्ध से १०० वर्ष पूर्व से १०० वर्ष पश्चात् तक माना जाता है । अतः बौधायन श्रौत में स्मृत पैङ्गला- १५ यनिब्राह्मण पिङ्गल पौत्र पैङ्गलायनि प्रोक्त नहीं हो सकता यह स्पष्ट काल भारतीय प्राचीन आर्ष वाङ्मय और उसके अतिप्राचीन इतिहास को अधिक से अधिक अर्वाचीन सिद्ध करने के लिए बद्धपरिकर २० पाश्चात्य विद्वानों ने पाणिनि का समय ७ वीं शती ईसा पूर्व से लेकर ४ थी शती ईसा पूर्व अर्थात् ६५७ वि० पूर्व से २५८ विक्रम पूर्व तक माना है। पूर्व सीमा गोल्डस्टुकर की है और अन्तिम सीमा बैवर और कीथ द्वारा स्वीकृत है। भारतीय प्राचीन इतिहास के सम्बन्ध में १. देखो पूर्व पृष्ठ २०४ टि० १। २. अप्येकां गां दक्षिणां दद्यादिति पैङ्गलायनिब्राह्मणं भवति । ३. पुराणप्रोक्तेषु ब्राह्मणकल्पेषु । अष्टा ४।३।१०५ ॥ ४. इसका प्रधान कारण यहूदी ईसाइमत का पक्षपात है। इस के लिये देखो पं० भगवद्दत्त कृत 'Western Indologists : A Study In Motives'.
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy