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पाणिनि और उसका शब्दानुशासन
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तपस्या की थी और उसी के प्रभाव से वैयाकरणों में प्रमुखता प्राप्त की थी।
सम्पन्नता-पाणिनि का कुल अत्यन्त सम्पन्न था। उसके अपने शब्दानुशासन के अध्ययन करने वाले छात्रों के लिये भोजन का प्रबन्ध कर रक्खा था । उसके यहां छात्र को विद्या के साथ-साथ भोजन भी ५ प्राप्त होता था। इसी भाव को प्रकट करने वाला 'मोदनपाणिनीयाः' उदाहरण पतञ्जलि ने महाभाष्य ११११७३ में दिया है । काशिका ६।२। ६६ में वामन ने पूर्वपदायुदात्त 'मोदनपाणिनीयाः' उदाहरण निन्दार्थ में दिया है। इसका अर्थ है-पोदनप्रधानाः पाणिनीयाः' अर्थात् जो श्रद्धा के विना केवल अोदनप्राप्ति के लिये पाणिनीय शास्त्र को पढ़ता १० है, वह इस प्रकार निन्दावचन को प्राप्त होता है ।।
मृत्यु-पाणिनि के जीवन का किञ्चिन्मात्र इतिवृत हमें ज्ञात नहीं। पञ्चतन्त्र में प्रसंगवश किसी प्राचीन ग्रन्थ से एक श्लोक उद्धृत किया है, जिसमें पाणिनि जैमिनि और पिङ्गल के मृत्यु-कारणों का उल्लेख है । वह श्लोक इस प्रकार है- सिंहो व्याकरणस्य कर्तुरहरत् प्राणान् प्रियान् पाणिनेः, मीमांसाकृतमुन्ममाथ सहसा हस्ती मुनि जैमिनिम् । छन्दोज्ञाननिधि जघान मकरो वेलातटे पिङ्गलम्, अज्ञानावृतचेतसामतिरुषां कोऽर्थस्तिरश्चां गुणैः ॥'
इससे विदित होता है कि पाणिनि को सिंह ने मारा था। वैया- २० करणों में किंवदन्ती है कि पाणिनि की मृत्यु त्रयोदशी को हुई थी।
१. गोपर्वतमिति स्थानं शम्भोः प्रख्यापितं पुरा। यत्र पाणिनिना लेभे वैयाकरणिकाग्रयता ॥ माहेश्वर खण्डान्तर्गत अरुणाचल माहात्म्य, उत्तरार्ध २ । ६८, पृष्ठ ६२१ मोर संस्क० (कलकत्ता)।
२. पञ्चतन्त्र, मित्रसंप्राप्ति श्लोक ३६, जीवानन्द संस्क० । चक्रदत्तविर- २५ चित चिकित्सासंग्रह का टीकाकार निश्चुलकर (सं० ११६७-११७७=सन १११०-११२० ) इस श्लोक को इस प्रकार पढ़ता है--'तदुक्तम-छन्दोज्ञाननिघि जघान मकरो वेलातटे पिङ्गलम्, सिंहो व्याकरणस्य कर्तुरपहरत् प्राणान् प्रियान पाणिनेः। मीमांसाकृतमुन्ममाथ तरसा हस्ती वने जैमिनिम, अज्ञानावतचेतसामतिरुषां कोऽर्थस्तिरश्चां गुणैः ॥ इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टी जून ३० १९४७ पृष्ठ १४२ में उद्धृत।