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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
अनेक शिष्य-काशिका ६।२।१०४ में पाणिनि के शिष्यों को दो विभागों में बांटा है-पूर्वपाणिनीयाः, अपरपाणिनीयाः। महाभाष्य १।४।१ में पतञ्जलि ने भी लिखा है-उभयथा ह्याचार्येण शिष्याः सूत्रं प्रतिपादिताः, केचिदाकडारादेका संज्ञा इति, केचित् प्राक्कडारात् परं कार्यमिति । इस से विदित होता है कि पाणिनि के अनेक शिष्य थे और उसने अपने शब्दानुशासन का भी अनेक बार प्रवचन किया था।
देश-पाणिनि का एक नाम शालातुरीय है। जैनलेखक वर्धमान गणरत्नमहोदधि में इस की व्युत्पत्ति इस प्रकार दर्शाता है
शलातुरो नाम ग्रामः, सोऽभिजनोऽस्यास्तीति शालातुरीयः तत्र भवान् पाणिनिः ।
अर्थात्-शलातुर ग्राम पाणिनि का अभिजन था ।
पाणिनि ने अष्टाध्यायी ४।३।६३ में साक्षात् शलातुर पद पढ़ कर अभिजन अर्थ में शलातुरीय पद की सिद्धि दर्शाई है। भोजीय १५ सरस्वतीकण्ठाभरण ४।३।२१० में 'सलातुर' पद पढ़ा है।
अभिजन और निवास में भेद-महाभाष्य ४।३।९० में अभिजन और निवास में भेद दर्शाया है
अभिजनो नाम यत्र पूर्वैरुषितम्, निवासो नाम यत्र संप्रत्युष्यते ।
इस लक्षण के अनुसार शलातुर पाणिनि के पूर्वजों का वासस्थान २० था, पाणिनि स्वयं कहीं अन्यत्र रहता था। पुरातत्त्वविदों के मतान
सार पश्चिमोत्तर-सीमा प्रान्तस्थ अटक समीपवर्ती वर्तमान 'लाहुर' ग्राम प्राचीन शलातुर है। ___ अष्टाध्यायी के 'उदक् च विपाशः, वाहोकनामेभ्यश्च, इत्यादि
सूत्रों तथा इनके महाभाष्य से प्रतीत होता है कि पाणिनि का वाहीक २५ देश से विशेष परिचय था । अतः पाणिनि वाहीक देश वा उसके अतिसमीप कः निवासी होगा।
तपःस्थान-स्कन्द पुराण में लिखा है कि पाणिनि ने गोपर्वत पर
१. गण० महो० पृष्ठ १। २. अष्टा० ४।२।७४। ३. अष्टा० ४।२।११७॥
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