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________________ पाणिनि और उसका शब्दानुशासन . २०१ में दो उदाहरण और दिये हैं--अनषिवान् कौत्सः पाणिनिम्, उपशुश्रुवान् कौत्सः पाणिनिम् । इन उदाहरणों से व्यक्त होता है कि कोई कौत्सः पाणिनि का शिष्य था। जैनेन्द्र आदि व्याकरण की वृत्तियों में भी गुरु-शिष्यसम्प्रदाय का इस प्रकार उल्लेख मिलता है। एक कौत्स निरुक्त १११५ में उद्धत है।' गोभिल गृह्यसूत्र, आपस्तम्ब ५ धर्मसूत्र, आयुर्वेदीय कश्यपसंहिता और सामवेदीय निदानसूत्र में भी किसी कौत्स का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद की शौनकीय चतुरध्यायी भी कौत्सकृत मानी जाती है एक वरतन्तु शिष्य कौत्स रघुवंश ५।१ में निर्दिष्ट है। पाणिनि शिष्य कौत्स इनसे भिन्न है। क्योंकि रघुवंश के अतिरिक्त जिन ग्रन्थों में कौत्स स्मृत है, वे सब १० पाणिनि से पूर्वभावी हैं। सत्यकाम वर्मा का मिथ्या प्रलाप-डा० सत्यकाम वर्मा में 'संस्कृत व्याकरण का उद्भव और विकास' नामक ग्रन्थ के पृष्ठ १२६-१२८ तक मेरे विषय में 'मैं यास्कीयनिरुक्तोधृत कौत्स को पाणिनि का शिष्य मानता है' मिथ्या लिख कर खण्डन करने का प्रयत्न किया है । जब १५ कि मैंने स्पष्ट लिखा है कि पाणिनि शिष्य कौत्स इन (पूर्व निदिष्ट कौत्सों) से भिन्न है, तब क्या सत्यकाम वर्मा का मेरे नाम से मिथ्या निर्देश करके उस का खण्डन करना स्व पाण्डित्य-प्रदर्शन करना नहीं है ? क्या यह विद्वानों का काम है ? ___ कात्यायन-नागेश के लघुशब्देन्दुशेखर से ध्वनित होता है कि २० कात्यायन पाणिनि का साक्षात शिष्य है। पतञ्जलि के साक्षात शिष्य न होने से त्रिमुनि उदाहरण को चिन्त्य कहा है अथवा प्रकारान्तर से उपपत्ति दर्शाई हैं । हमारा भी यही विचार है कि वार्तिककार वररुचि कात्यायन पाणिनि का साक्षात् शिष्य है । इस विषय पर विशेष कात्यायन के प्रकरण में लिखेंगे । १. जैनेन्द्र व्या० महानन्दिवृत्ति २।२। ८८, ६६ ॥ २. यदि मन्त्रार्थप्रत्यायनायानर्थको भवतीति कौत्सः । २. ३॥१०॥४॥ ४. १११६४॥ १॥२८॥१॥ ५. पृष्ठ ११५ । ६. २।१,१०॥ ३॥११॥ ८॥१०॥ ७. पूर्व पृष्ठ ७३, टि० ७ । ८. कौत्सः प्रपेदे वरतन्तुशिष्यः । ६. अव्ययीभाव प्रकरण में ‘संख्या वंश्येन' सूत्र की व्याख्या में । 26
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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