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________________ ५ २०० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास नीतिसार' आदि में बहुवचनान्त आचार्य पद का व्यवहार बहुधा मिलता है, परन्तु वह अपने गुरु के लिये व्यवहृत हुअा है यह अनिश्चित है। महाभाष्य में एक स्थान पर कात्यायन के लिये और तीन स्थानों पर पाणिनि के लिये बहुवचनान्त आचार्य पद प्रयुक्त हुआ है। कयासरित्सागर आदि के अनुसार पाणिनि के गुरु का नाम 'वर्ष' था। वर्ष का अनुज 'उपवर्ष' था । एक उपवर्ष जैमिनीय सूत्रों का वृत्तिकार था। एक उपवर्ष धर्मशास्त्रों में स्मृत है।' हमारे विचार में जमिनीय सूत्र-वृत्तिकार और धर्मशास्त्र में स्मृत उपवर्ष एक हो है । यह उपवर्ष जेमिनि से कुछ हो उत्तरकालीन है। १० अवन्तिसुन्दरीकथासार में वर्ष और उपवर्ष का तो उल्लेख है, परन्तु उसमें पाणिनि का उल्लेख नहीं है । अर्वाचीन वैयाकरण महेश्वर को पाणिनि का गुरु मानते हैं, परन्तु इस में कोई प्रमाण नहीं है। कथासरित्सागर की कथाएं ऐतिहासिक दृष्टि से पूरी प्रामाणिक नहीं हैं। अतः पाणिनि के प्राचार्य का नाम सन्दिग्ध है। हां, यदि कथा सरि१५ सागर में स्मत उपवर्ष भी प्राचीन जैमिनीयवत्तिकार और धर्म शास्त्रों में स्मृत उपवर्ष हो हो और इसी का भाई वर्ष हो तो उसे पाणिनि का प्राचार्य माना जा सकता है । उस अवस्था में कथासरित्सागरकार का इन वर्ष उपवर्ष को नन्दकालिक लिखना भ्रान्तिमूलक मानना पड़ेगा। कई आधुनिक विद्वान् भी पाणिनि का काल नन्द से प्राचीन २० मानते हैं । शिष्य-कौत्स-पातञ्जल महाभाष्य ३।२।१०८ में एक उदाहरण है-उपसेदिवान् कौत्सः पाणिनिम् । इसो सूत्र पर काशिका वृत्ति १. ८ । ५८ ॥ २. द्र० पू० पृ. १५६ टि० ११ । ३. अथ कालेन वर्षस्य शिष्यवर्गों महानभूत् । तत्रैकः पाणिनि म २५ जडबुद्धितरोऽभवत् ॥ कथा० लम्बक १, तरङ्ग ४, श्लोक २० ।' , ४. शाबरभाष्य १११॥५॥ केशव, कोशिकसूत्र टीका, पृष्ठ ३०७ । सायण; अथर्वभाष्योपोद्धात पृष्ठ ३५ । प्रपञ्चहृदय पृष्ठ ३८ । ५. तथा च प्रवरमञ्जरीकारः शिष्टसम्मतिमाह--शुद्धाङ्गिरो गर्गमये कपयः पठिता अपि । प्राचार्यरुपवर्षाद्यैर्भरद्वाजाः स्युरेव ते । द्विविधानपि १गर्गास्तानुपवर्षों महामुनिः । अनुक्रम्य त्ववैवाह्यान् भरद्वाजतया जगी। वीर मित्रोदय, संस्कारप्रकाश, पृष्ठ ६१३, ६१४ में उद्धृत ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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