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________________ पाणिनि और उसका शब्दानुशासन १६९ पाणिनि का अनुज लिखा है।' श्लोकात्मक पाणिनीय की शिक्षाप्रकाश नाम्नी व्याख्या के रचयिता का भी यही मत है ।' इस प्रकार पाणिनि के पूरे वंश का चित्र इस प्रकार बनता है व्यड पणिन्+दाक्षी'(व्याड्या) दाक्षि (व्याडि) ५ पिङ्गल पाणिन-पाणिनि प्राचार्य-पाणिनि ने अपने शब्दानुशासन में दो स्थानों पर बहुवचनान्त आचार्य पद का निर्देश किया है। हरदत्त का मत है कि पाणिनि बहुवचनान्त आचार्य पद से अपने गुरु का उल्लेख करता है।' ऐतरेय आरण्यक, शांखायन आरण्यक', हारीत धर्मसूत्र, १० यास्कोय निरुक्त, तैत्तिरीय प्रातिशाख्य, ऋतन्त्र, पातञ्जल महाभाष्य," कौटल्य अर्थशास्त्र, वात्स्यायन कामसूत्र और कामन्दकीय १. तथा च सूत्र्यते भगवता पिङ्गलेन पाणिन्यनुजेन 'क्वचिन्नवकाश्चत्वारः' (६७) इति परिभाषा। पृष्ठ ७०। २. ज्येष्ठभ्रातृभिविहितो व्याकरणेऽनुज, स्तत्र भगवान् पिङ्गलाचार्यस्तन्मतमनुभाव्य शिक्षां वक्तुप्रतिजानीते। १५ शिक्षासंग्रह, काशी संस्क० ३८५। ३. अष्टा० ७॥३॥४६॥ ८॥४॥५२॥ ४. प्राचार्यस्य पाणिनेर्य प्राचार्य: स इहाचार्य:, गुरुत्वाद् बहुवचनम् । पद. ७.३।४६; भाग २, पृष्ठ ८२१ । ५. ३।२६॥ ६. नान्तेवासिने ब्रूयात्..... ना प्रवक्तत्र इत्याचा:।८।११॥ ___७. आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिरित्याचार्या: । उद्धृत कृत्यकल्पतरु, ब्रह्मचारी- २० काण्ड,पृष्ठ ११६ । ८. मध्यममित्याचार्याः ७॥२२॥ ६. आदिरस्योदात्तसमइत्याचार्याः १॥४६॥ १०. वायु प्रकृतिमाचार्याः । पृष्ठ १ । ११. नह्याचार्या: सूत्राणि कृत्वा निवर्तयन्ति । १३१॥ प्रा० १॥ तदेतदत्यन्तं . सन्दिग्धं वर्तते प्राचार्याणाम् । १।१आ० २॥ इहेङ्गितेन चेष्टितेन महता वा सूत्रप्रबन्धेनाचार्याणामभिप्रायो लक्ष्यते । ६।१॥३७॥ ८॥२॥३॥ २५ १२. १ ॥ ४ ॥२॥६॥३॥ ४, ५, ७ इत्यादि ३६ स्थानों पर । १३. ११२॥२१॥ १।३१७ इत्यादि १० स्थानों पर ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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