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________________ १९८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास वैयाकरणों को भूल-उत्तरकालीन कैयट हरदत्त प्रादि सभी वैयाकरण लक्षणकचक्षु बन गये। उन्होंने यथाकथमपि लक्षणानुसार शब्दसाधुत्व बताने की चेष्टा की, लक्ष्य पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया । हम पूर्व लिख चुके हैं कि पाणिन और पाणिनि दोनों नाम एक व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होते हैं।' ऐसी अवस्था में पाणिन को पाणिनि का पिता बताना साक्षात् ऐतिह्यविरुद्ध है । इतना ही नहीं, जिस पाणिनि शब्द को यह वैयाकरण युवाप्रत्ययान्त कहते हैं वह तो गोत्रप्रवर प्रकरण में गोत्ररूप से पठित है। इसलिए पाणिनि का पिता पाणिन नहीं, अपितु पणिन् ही है और इसी का दूसरा रूप १० पणिन अकारान्त है। पतञ्जलि ने महाभाष्य १२१२२० में पाणिनि का दाक्षीपुत्र नाम से स्मरण किया है। दाक्षी पद गोत्रप्रत्ययान्त 'दाक्षि' का स्त्रीलिङ्ग रूप है। इस से व्यक्त होता है कि पाणिनि की माता दक्ष-कूल की थी। १५ मातृबन्धुः-संग्रहकार व्याडि का एक नाम दाक्षायण है। तद नुसार वह पाणिनि का मामा का पुत्र=ममेरा भाई होना चाहिए । परन्तु काशिका ६।२।६९ के कुमारीदाक्षाः उदाहरण में दाक्षायण को ही दाक्षि नाम से स्मरण किया है । अतः प्राचीन पद्धति के अनुसार दाक्षि और दाक्षायण दोनों ही नाम संग्रहकार व्याडि के हैं । इसलिए २० संग्रहकार व्याडि पाणिनि की माता का भाई और पाणिनि का मामा ही है, यह निश्चित है। व्याडि पद क्रौड्यादि गण (४।१।८०) में पढ़ा है, तदनुसार व्याडि की भगिनी दाक्षी का नाम व्याड्या भी है, पाणिनि की माता दाक्षो के लिए व्याड्या का प्रयोग अन्यत्र उपलब्ध नहीं हुआ । इसी नाम परम्परा के अनुसार पाणिनि के नाना २५ अर्थात् दाक्षी के पिता का नाम व्यड था। अनुज-पिङ्गल-कात्यायनीय ऋक्सर्वानुक्रमणी के वृत्तिकार षड्गुरुशिष्य वेदार्थदीपिका में छन्दःशास्त्र के प्रवक्ता पिङ्गल को . १. द्रष्टव्य पूर्व पृष्ठ १९५-१६७ । २. देखिए इसी प्रकरण में आगे पाणिनि गोत्र, पृष्ठ २०४। ३० ३. दाक्षीपुत्रस्य पाणिनेः। ११। २० ॥ ४. शोभना खलु दाक्षायणस्य संग्रहस्य कृतिः। महा० २॥३॥६६॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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