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पाणिनि और उसका शब्दानुशासन १९७ उदाहरण द्वारा बाभ्रव्यों और शालकायनों का विरोघ प्रर्दिशत कराया है । काशिका ६।२।३७ में भी बाभ्रवशालङ्कायनाः उदाहरण मिलता है । बाभ्रव्य भी कोशिक अन्वय में हैं। अतः ये शालङ्कायनि कौशिक ही होंगें । काशिका ५५११५८ में शालङ्गायनियों के तीन विभागों का निर्देश मिलता है।' ___७. शा (सा)लातुरीय-पाणिनि के लिए इस नाम का निर्देश वलभी के ध्रुवसेन द्वितीय के संवत् ३१० के ताम्रशासन, भामह के काव्यालंकार, काशिकाविवरण-पञ्जिका (न्यास) तथा गणरत्नमहोदधि में मिलता है।
८. माहिक-इस नाम के विषय में हमें कुछ ज्ञान नहीं और न १० ही इस का प्रयोग कोश से अन्यत्र हमें उपलब्ध हुआ।
वंश-हम पूर्व लिख चुके हैं कि पं० शिवदत्त शर्मा ने पाणिनि का शालति नाम पितृ-व्यपदेशज माना है और पाणिनि के पिता का नाम शलङ्क लिखा है। गणरत्नावली में यज्ञेश्वर भट्ट ने भी शालति के पिता का नाम बलङ्क ही लिखा है। कैयट हरदत्त" और वर्धमान" १५ शालङ्कि का मूल शलङ्कु मानते हैं ।
हरदत्त ने पाणिनि पद की व्युत्पत्ति इस प्रकार दर्शाई है
[पणोऽस्यास्तीति पणी] पणिनोऽपत्यमित्यण्..... [पाणिनः], पाणिनस्यापत्यं पणिनो युवेति इञ् [पाणिनिः] ।२
यही व्युत्पत्ति कयट मादि अन्य व्याख्याता भी मानते हैं।" २० १. मधुबभ्रुवोर्ब्राह्मणकौशिकयोः । अष्टा० ४।१।१०६॥ २: त्रिकाः शालङ्कायनाः। ६. राज्यसालातुरीयतन्त्रयोरुभयोरपि निष्णातः । ४. सालातुरीयपदमेतदनुक्रमेण । ६६२॥
५. शालातुरीयेण प्राक् ठजश्छ इति नोक्तम् । न्यास ५।१।१॥ भाग २, २५ पृष्ठ ३॥
६. शालातुरीयस्तत्र भवान् पाणिनिः । पृष्ठ १ । ७. भूमिका, महा० नव० निर्णयसागर संस्क०, पृष्ठ १४ । ८. हमारा हस्तलेख, पृष्ठ १२२ । ६. महाभाष्य-प्रदीप ४११०॥ १०. पदमञ्जरी २।४॥५६॥ ११. गणरत्नमहोदधि, पृष्ठ ११५ । १२. पदमञ्जरी १।१।७३, भाग १, पृष्ठ १४४ । १३. द्रष्टव्य पूर्व पृष्ठ १६४, टि० ५।