SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ५. दाक्षीपुत्र--इस नाम का उल्लेख महाभाष्य', समुद्रगुप्त विरचित कृष्णचरित' श्लोकात्मक पाणिनीय शिक्षा में मिलता है । ६. शालङ्कि--यह पितृव्यपदेशज नाम है ऐसा म० म० पं० शिवदत्त शर्मा का मत है। पाणिनि के लिए इस पद का प्रयोग कोश ग्रन्थों से अन्यत्र हमें उपलब्ध नहीं हुआ। पैलादिगण (२।४।५६) में 'शालङ्कि' पाठ सामर्थ्य से शलङ कु को शलङ्क आदेश और इञ् होता __ पैलादि गण २। ४ । ५६ में पठित शालति पद का पाणिनि के साथ संबन्ध है अथवा नहीं, यह हम निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते, १० परन्तु इतना निश्चित है कि वह प्राग्देशीय गोत्र नहीं था। महा भाष्य ४१६०,१६५ में शालङ्क! नश्छात्रा: शालङ्काः पाठ उपलब्ध होता है । यहां शालङ्कि पद अष्टाध्यायो २।४।५६ के नियम से शालङ्कि के अपत्य का वाचक है । शालति का अपत्य शालङ्कायन और उसका अपत्य शालङ्कायनि कहा जाता है। ऐसा काशकृत्स्न १५ धातुपाठ के टीकाटार चन्नवोर कवि का कथन है। काशकृत्स्न धातुपाठ में शलकि (क) स्वतन्त्र धातु पड़ी है । शालङ्कायन-प्रोक्त ग्रन्थ के अध्ययन करने वाले शालङ्कायनियों का निर्देश लाट्यायन श्रौत में उपलब्ध होता है। एक शालङ्कायन गोत्र कौशिक अन्वय में भी है। इस गोत्र के २० व्यक्ति राजन्य है।" काशिका ४।३।१२५ में बाभ्रव्यशालङ्कायनिका १. सर्वे सर्वपदादेशा दाक्षीपुत्रस्य पाणिनेः १।१।२०॥ २. दाक्षीपुत्रवचोव्याख्यापटुर्मीमांसकाग्रणी: । मुनिकविवर्णन श्लोक १६ । ३. शंकरः शांकरी प्रादाद् दाक्षीपुत्राय धीमते। श्लोक ५६ । ४. महाभाष्य नवाह्निक, निर्णयसागर संस्क० भूमिका पृष्ठ १४ । ५. पैलादिपाठ एव ज्ञापक इनो भावस्य । काशिका ४१॥६६ ६. अन्ये पैलादय इनन्तास्तेभ्यः 'इनः' प्राचाम्' इति लुके सिद्धेप्रागर्थः पाठ, । काशिका २४॥५६॥ इसी प्रकार तत्त्वबोधिनी में लिखा है। ७. शलङ्कः-ब्रह्मणः पुत्रः । शालङ्किः-शलङ्कस्य पुत्रः। शालद्वायन:शलङ्कः पुत्रः । शालङ्कायनि:-शालङ्कायनस्य पुत्रः । (काश० धातुम्यास्यानम् ११४९४) ॥ ८. काश० धातु. १४६४॥ ६. लाट्या० श्रौत ४८॥२०॥ १०. शलङ्कु शलङ्क चेत्यत्र पठ्यते "गोत्रविशेष कौशिके फकं स्मरन्ति । काशिका ४११६६॥ ११. शालकायना राजन्याः । काशिका ५॥३३११०॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy