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पाणिनीय अष्टाध्यायी में स्मृत प्राचार्य १८७ कई विद्वानों का मत है कि शाकल्य ने कोई व्याकरणशास्त्र नहीं रचा था। पाणिनि आदि वैयाकरणों ने शाकल्यकृत ऋक्पदपाठ से उन नियमों का संग्रह किया है। यह मत अयुक्त है । पाणिनि आदि ने शाकल्य के कई ऐसे मत उद्धृत किये हैं जिनका संग्रह पदपाठ से नहीं हो सकता । यथा-इकोऽसवणे शाकल्यस्य लस्वश्च', कुमारी ५ प्रत्र । यहां संहिता में प्रकृतिभाव तथा ह्रस्वत्व का विधान है। पदपाठ में संहिता का अभाव होता है । अतः ऐस नियम उसके व्याकरण से ही संगृहीत हो सकते हैं।
_अन्य ग्रन्थ शाकल चरण-पुराणों में वेदमित्र शाकल्य को शाकल चरण की १० पांच शाखाओं का प्रवक्ता लिखा है। ऋक्प्रातिशाख्य ४।४ में शौनक ने 'विपाछुतुद्री पयसा जवेते आदि में श्रूयमाण छकारादेश का विधान शाकल्य के पिता के नाम से किया है। इससे स्पष्ट है कि शाकल्य ने ऋग्वेद की प्राचीन संहिता का केवल प्रवचन मात्र किया है, परिवर्तन नहीं किया । अन्यथा इस नियम का उल्लेख उसके पिता १५ के नाम से नहीं होता।
पदपाठ-शाकल्य ने ऋग्वेद का पदपाठ रचा था। उस का उल्लेख निरुक्त ६।२८ में मिलता है। वायुपुराण ६०।६३ में वेदमित्र शाकल्य को पदवित्तम कहा है। इस से स्पष्ट है कि शाकल चरण प्रवर्तक ने ही पदपाठ की रचना की है । ऋग्वेद के पदपाठ में व्यवहृत २० कुछ विशिष्ट नियम पाणिनि ने 'संबुद्धौ शाकल्यस्येतावनार्षे, उत्रः उँ सूत्रों में उद्धृत किये हैं । अतः वैयाकरण शाकल्य और शाकल चरण तथा उसके पदपाठ का प्रवक्ता निस्संदेह एक व्यक्ति है।
१. अष्टा० ६ ॥१॥१२७ ।।
२. वेदमित्रस्तु शाकल्यो महात्मा द्विजसत्तमः । चकार संहिताः पञ्च २५ बुद्धिमान् पदवित्तमः ॥ वायुपुराण ६० । ६३ ॥
३. ऋ० ३ । ३३ । १॥ ४. सर्वैः प्रथमैरुपधीयमानः शकार: शाकल्यपितुश्छकारम् । ५. वा इति च य इति च चकार शाकल्यः, उदात्तं त्वेवमाख्यातमभविष्यत् । ६. द्र० इसी पृष्ठ की टि. २ ।
३० ७. वायो इति ११२॥१॥ ॐ इति ११२४१८॥ ८. अष्टा० १११११६-१८॥