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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
शाकल्यकृत पदसंहिता का उल्लेख महाभाष्य ११४ | ८४ में मिलता है । ' शाकल्यकृत पदपाठ का एक नियम शुक्लयजुः प्रातिशाख्य के व्याख्या - कार उव्वट ने उद्धृत किया है ।"
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माध्यन्दिन पदपाठ - इस पदपाठ का प्रवचन भी शाकल्यकृत है । ऐशियाटिक सोसाइटी कलकत्ता के पुस्तकालय में एक माध्यन्दिन संहिता के पदपाठ का हस्तलेख विद्यमान है । उसके अन्त में उसे शाकल्यकृत लिखा है । अन्य ग्रन्थ साक्ष्य के अभाव में अनुसंधाता लोग इसे प्रमाद पाठ मान कर उपेक्षा करते रहे । परन्तु जब हमें सं० १५ २०२० में हमारे मित्र श्री पं० मदनमोहन व्यास ( केकड़ी - राजस्थान )
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चरणव्यूह परिशिष्ट के व्याख्याता महिदास के मतानुसार शाकल्य ने ऋग्वेद के संहिता, पद, क्रम, जटा और दण्ड-पाठ को वात्स्यादि शिष्यों के लिये प्रवचन किया था। क्या वायुपुराण ६० । ६३ में कही गई पांच संहिताएं ये ही हैं ? संदेह का कारण यह है, इन पाठों के लिये भी पद संहिता, क्रम-संहिता आदि का प्रयोग होता है।
ने वि० स० १४७१ का लिखा संपूर्ण पदपाठ हमें दिया तब हमें यह देखकर अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि उसके अन्तिम १० अध्यायों के अन्त में शाकल्यकृते का स्पष्ट निर्देश विद्यमान हैं। यह पदपाठ कुछ अवान्तर नियमों से भिन्नता रखता है । हमने माध्यन्दिन संहिता के २० पदपाठ का जो संशोधित संस्करण छापा है उस में इस विषय पर विस्तार से विवेचना की है । हमारा मत है कि माध्यन्दिन पदपाठ भी शाकल्य कृत है ।
९ - सेनक ( २९५० वि० पूर्व ० )
पाणिनि ने सेनक आचार्य का उल्लेख केवल एक सूत्र में किया
१. शाकल्येन सुकृतां संहितामनुनिशम्य देवः प्रावर्षत् ।
२. देखो पूर्व पृष्ठ १६४ |
३. शाकल्यः संहिता -पद- क्रम- जटा - दण्डरूपं च पञ्चधा व्यासं कृत्वा - वात्स्यमुद्गलशालीयगोसत्यशिशिरेभ्यो ददौ । चौखम्बासीरीजमुद्रित शुक्लयजु:३० प्रातिशाख्य के अन्त में । पृष्ठ ३